3 Log Jinka Muqam Baap Ki Tarha Hai | 3 लोग जिनका मक़ाम बाप की तरह है

3 Log Jinka Muqam Baap Ki Tarha Hai

3 Log Jinka Muqam Baap Ki Tarha Hai |

3 लोग जिनका मक़ाम बाप की तरह है

आप जानते हैं कि इस्लाम में बाप को अहमियत देना और उनकी इज्ज़त करना लाज़िम और ज़रूरी क़रार दिया है लेकिन ये कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं जिनको शरीयत ने वालिद और बाप का दर्जा दिया है यानि उनकी इज्ज़त और उनका एहतराम बिलुकल वैसा ही किया जाना चाहिए जैसे कि वालिद और बाप का, तो चलिए आज जानते हैं कि वो कौन लोग हैं और कौन से ऐसे रिश्ते हैं कौन से 3 लोग जिनका मक़ाम बाप की तरह है  ( 3 Log Jinka Muqam Baap Ki Tarha Hai ) जिनको शरीयत ने वालिद और बाप का दर्जा दिया है

3 लोग जिनका मक़ाम बाप की तरह है

1. बाप यानि वालिद

कुरआन मजीद में अल्लाह तआला ने कई जगह वालिदैन की ख़िदमत और उनके साथ हुस्न-ए-सुलूक का हुक्म दिया है। सुरह लुक़मान में अल्लाह तआला फरमाते हैं: “और हमने इंसान को अपने वालिदैन के साथ हुस्न-ए-सुलूक का हुक्म दिया” (लुक़मान: 14) इससे ज़ाहिर होता है कि अल्लाह ने वालिदैन के मक़ाम को बुलंद करते हुए उनकी इताअत और फरमाबरदारी को लाज़िम क़रार दिया है।

हदीस में भी वालिद की एहमियत बताई गयी है जिसमें नबी करीम ﷺ ने फरमाया: “बाप जन्नत के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है, अगर चाहो तो इसे महफूज़ रखो या ज़ाया (बरबाद) कर दो।” (तिर्मिज़ी)। इस हदीस से वालिद की ये अहमियत ज़ाहिर होती है कि उसकी ख़िदमत और एहतेराम से जन्नत का दरवाज़ा खुलता है।

वालिद अपने बच्चों की ज़िन्दगी में एक बेहतरीन लीडर रहनुमा और मददगार होता है। उसकी मेहनत, क़ुर्बानियाँ और मोहब्बत व तरबियत बच्चों की शख्सियत को संवारती हैं। इस्लामी तालीमात हमें ये सिखाती हैं कि वालिद के हुक़ूक़ को पूरा करने में हम कमी बिलकुल भी न करें, उनके साथ नरमी और शफक़त से पेश आएँ, उनके हक़ में दुआएं करें और उनकी रज़ा को अल्लाह की रज़ा का सबब समझें।

इस्लाम में वालिद की इज़्ज़त करना, उनकी ख़िदमत और उनकी दुआओं को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाना कामयाबी की कुंजी है।

2. ससुर

दूसरा वह शख्स भी वालिद की तरह एहतराम के लायक है जिसके जरिए इंसान का आधा दीन मुकम्मल होता है वह कौन है ससुर (उर्दू में ख़ुसर भी कहते हैं ) जब किसी शख्स को अल्लाह तआला ने नेक औरत दे दी तो सिर्फ़ औरत नहीं दी बल्कि उसका अधूरा ईमान मुकम्मल करने में मदद फरमा दी तो इस नेक औरत की परवरिश किसने की, ये शादी किसकी इजाज़त से हुई, ज़ाहिर है लड़की का बाप, तो आधा ईमान मुकम्मल करने वाला कौन हुआ ससुर

आज कल के ससुर और दामाद का हाल 

कुछ लोगों के लिए ये एक अचंभे की बात होती है कि अच्छा इसका मतलब ससुर के भी फजाइल है, क्योंकि हम ये समझते हैं उसका काम यही था कि 20 साल उसने पाला अब उसने दे दिया तो अब यह कौन है, नहीं बल्कि वह आपके बाप की तरह है, और जिसको हम दामाद कह देते हैं बेटा नहीं समझते, ससुर समझते हैं बाप नहीं समझते ये अल्फाज दामाद है बेटा तो नहीं है वो भी कहते ससुर है बाप तो नहीं है बल्कि थोड़ा और गहराई से समझिये तो आज इन अल्फाज को गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है और यह सख्त बेअकली और कम अक़ली और कम फहमी की अलामत है और रसूल (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) ने दीन में ये तसव्वुर नहीं दिया

ससुर का एहतराम क्यूँ ?

आप को वैसे भी बड़े की इज्जत करना चाहिए और आप उसी की इज्जत नहीं करते जिसने आपको 20 या 22 साल की नाजों से पली बेटी की परवरिश की और उसे तुम्हारे सुपुर्द कर दिया हालाँकि कुछ लोगों की शिकायत रहती है कि उसने हमें दिया क्या है, अरे जनाब, भाई, मोहतरम, जिसने नेक बेटी दे दी उसने छोड़ा क्या है, ज़रा सोचो तो उसने छोड़ा क्या है और क्या चाहिए आपको

मर्द की ज़िम्मेदारी : अगर आपके दिल में हो कि मुझे जहेज नहीं मिला ये सामान तो मुझे दिया ही नहीं इतना तो होना ही चाहिए था तो भाई साहब! जहेज का इन्तेजाम तो आप को करना चाहिए (जहेज़ से मेरा मतलब वो ज़रूरी सामान जो एक शादी शुदा जोड़े के लिए ज़रूरी होता है) क्यूंकि आप मर्द है घर आपको बनाना है उसमें ज़रूरी सामान का इन्तेजाम आप को करना ये सब मर्द की जिम्मेदारी है औरत की नहीं,

औरत की ज़िम्मेदारी : औरत की जिम्मेदारी तो ये है कि पूरी ईमानदारी के साथ अपने शौहर का घर संभालना उसकी इज्ज़त में और उसके माल में किसी भी किस्म की ख़यानत न करना और बच्चों की बेहतरीन तरबियत करना

3. इल्म सिखाने वाले उस्ताद

तीसरा उस्ताद भी बाप की तरह होता है आप सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम की जुबान से निकले हुये अल्फाज यह है “मेरे सहाबा मैं तुम्हारे लिए वालिद की तरह हूं” उसकी इल्लत क्या बयान की कि “मैं तुम्हें तुम्हारा दीन सिखाता हूं” तो जो दीन सिखाने वाला होता है उसका एहतराम भी ठीक उतना ही होता है जितना बाप का होता है इल्म सिखाने वाले की इज्ज़त और एहतेराम से अल्लाह तआला इल्म में बरकत अता फरमाते हैं और उसके इल्म को नफाबख्श बना कर उसके इल्म से काम लेते हैं और अगर कोई इसका उलट करता है महरूमी उसकी क़िस्मत में लिख दी जाती है |

आप अगर दीन का सही तरीके से मुताला करें तो जितना एतराम हमारे दीन में सिखाया गया है बड़े का एतराम, छोटे पे शफकत, मोहब्बत इतना आपको दुनिया के किसी भी दीन में नज़र नहीं आयेगा अल्लाह हम सबको अपने बड़ों की इज्ज़त और अपने छोटों पर शफ़क़त की तौफ़ीक़ अता फरमाए (आमीन)

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