History Of Kaaba In Hindi | काबा को कब और किसने बनाया

History Of Kaaba | कब और किसने बनाया | In Hindi

 

Kaaba ) काबा के नाम से जाना जाने वाला छोटा, चौकोर घर, ऊंचाई में गगनचुंबी इमारतों को टक्कर तो नहीं दे सकता है, लेकिन इतिहास और इंसान पर इसका असर बेजोड़ है।

मक्का में काबा वह इमारत है जिसकी ओर रुख करके मुसलमान दिन में पाँच बार, हर रोज़, नमाज़ पढ़ते हैं । 1400 साल पहले पैगंबर मुहम्मद स.अ. के दौर से यह मामला जारी है।

काबा का  ( साइज़ ) आकार

मौजूदा काबा की  ऊंचाई 39 फीट, 6 इंच और कुल आकार 627 वर्ग फीट है।

अंदरूनी कमरा 13X9 मीटर का है और दीवारें एक मीटर चौड़ी हैं। अंदर फर्श उस जगह से 2.2 मीटर अधिक है जहां लोग तवाफ़ करते हैं।

सीलिंग और छत लकड़ी से बने दो स्तर की हैं। उन्हें टीक के साथ फिर से बनाया गया था जो स्टेनलेस स्टील के साथ छाया हुआ है।

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दीवारें सभी पत्थर से बनी हैं। अंदर के पत्थर बिना ढके हुए हैं, जबकि बाहर वाले पॉलिश किए हुए हैं।

इस छोटी इमारत तामीर और दोबारा तामीर आदम, इब्राहिम, इस्माइल और मुहम्मद (उन सभी पर शांति हो) के ज़रिये की गयी है। किसी दुसरे घर को यह शरफ हासिल नहीं हुआ ।

बयतुल्लाह ( काबा ) के दुसरे नाम

बेतुल उल अतीक़ -, एक मीनिंग के मुताबिक़, सबसे पुराना और क़दीम ।

दूसरी मीनिंग के मुताबिक़, इसका मतलब आज़ादी और रिहाई है। दोनों मतलब निकाले जा सकते हैं

बैत उल हराम – मुहतरम घर

काबा के अंदर क्या है?

डॉ मुजम्मिल सिद्दीकी इस्लामिक सोसाइटी ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका (ISNA) के अध्यक्ष हैं। उन्हें अक्टूबर 1998 में काबा के अंदर जाने का मौक़ा मिला। एक इन्टरव्यू में, उन्होंने बताया :

• अंदर दो Pillar हैं (एक दूसरी रिपोर्ट 3 Pillar )
• इत्र जैसी चीज़ों को रखने के लिए एक तरफ एक मेज है
• छत से लटकते हुए दो लालटेन की तरह के लैंप हैं
• जगह इतनी है कि लगभग 50 लोग बैठ सकते हैं
• कोई इलेक्ट्रिक लाईट नहीं हैं
• दीवारें और फर्श संगमरमर के हैं
• अंदर कोई खिड़की नहीं हैं
• केवल एक दरवाजा है
• काबा की ऊपरी अंदर की दीवारें उन पर्दों से ढकी हुई हैं जिन पर कालिमा लिखा हुआ है

शरू से लेकर अब तक खाना काबा की तामीर करीबन 12 बार हुई लेकिन उन तामीर करने वालों में पांच लोग मशहूर हैं 

सब से पहले हज़रत आदम अलैहिस सलाम ने इस को बनाया

हज़रत अम्र इब्ने आस र.अ. से रिवायत है कि रसूल स.अ. ने फ़रमाया कि अल्लाह ने हज़रत जिबरईल अ.स. को हज़रत आदम अ.स.के पास काबतुल्लाह बनाने के लिये हुक्म भेजा | जब हज़रत आदम अलैहिस सलाम ने इसको तामीर कर लिया तो हुक्म हुआ कि इस घर का तवाफ़ करो

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दूसरी बार हज़रत इब्राहीम और हज़रात इस्माईल अ.स.ने इसको बनाया

जब नूह अ.स. के ज़माने में तूफ़ान आया तो बयतुल्लाह (काबा ) का निशान बाकी न रहा और हज़रत इब्राहीम अ.स. के ज़माने तक यही हालत रही तब अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम अ.स. को फिर से बनाने का हुक्म दिया | अब चूंकि नीव और बुनियादों के निशान भी बाकी न रहे थे इसलिए जिबरईल अ.स. ने आकर बुनियादों के निशान बतलाये तब इसकी दोबारा तामीर शुरू हुई

तीसरी बार हज़रात मुहम्मद अ.स.के दौर में कुरैश के लोगों ने इसको बनाया 

तीसरी बार जब नबी स.अ.की उम्र 35 साल थी और अभी नुबुव्वत के ऐलान में 5 साल बाकी थे तब कुरैश के लोगों ने इसको बनाया | हुआ ये कि काबे को बने हुए काफी अरसा गुज़र चका था दीवारों में दरार आ गयी थी बारिश की वजह से पानी अन्दर भर जाता था तब कबीला कुरैश के तमाम सरदारों ने ये फैसला किया कि काबे को गिरा कर फिर से एक नयी इमारत बना दी जाये |

तो अबू अम्र वहब मख्जूमी खड़े हुए और कुरैश के लोगों से कहा : देखो बयतुल्लाह ( काबा ) को बनाने में जो पैसा भी खर्च किया जाये वो हलाल कमाई का हो और सूद, जिना वगैरह का पैसा इस में शामिल न हो अल्लाह पाक है और पाक ही को पसंद करता है |

बयतुल्लाह को बनाने में हिस्सा लेने से कोई महरूम न रह जाये इसलिए अलग अलग क़बीलों में काम को बाँट दिया गया और कह दिया गया कि तुम फ़ुला हिस्सा बनाओ और तुम फुला हिस्सा तामीर करो |

काबा की इमारत को गिराने की शुरुआत किसने की 

जब पुरानी ईमारत गिराने का वक़्त आया तो किसी की हिम्मत न हुई कि वो बयतुल्लाह को गिराए लेकिन वलीद बिन मुगीरा फावड़ा लेकर खड़ा हो गया और ये कहा

“ए अल्लाह हम सिर्फ खैर और भलाई की नियत रखते हैं”

ये कह कर हजरे अस्वद ( काला पत्थर ) की तरफ से गिराना शुरू किया | मक्का वालों ने कहा : रात तक इन्तिज़ार करो अगर इस पर कोई आसमानी बला या मुसीबत नाजिल हुई तो हम काबे को फिर वैसा ही कर देंगे वरना हम वलीद का बनाने में साथ देंगे

जब सुबह हुई तो वलीद सही सालिम फावड़ा लेकर फिर पहुँच गया तो लोगों ने समझ लिया कि अल्लाह हमारे इस काम से राज़ी है |

हजरे अस्वद (Black Stone ) के लिए क़बीलों में लड़ाई 

जब बनकर तैयार हो गया तो हजरे अस्वद को अपनी जगह रखने का वक़्त आया तो लोग झगड़ने लगे हर कबीला चाहता था कि पत्थर अपनी जगह लगाने का शरफ उसे हासिल हो इसीलिए इस मुद्दे पर लड़ाई शुरू होने वाली थी, तभी मक्का के सबसे बूढ़े आदमी अबू उमैय्या ने प्रस्ताव रखा कि अगली सुबह मस्जिद के दरवाज़े से जो सब से पहले दाखिल हो वही शख्स इस मामले को तय करेगा। सब ने इस राय को पसंद किया

अगली सुबह क्या देखते हैं कि सब से पहले दरवाज़े से दाखिल होने वाले तो मुहम्मद स.अ. हैं,  आप को देखते ही सब कह उठे

“यह तो मुहम्मद है अमीन हैं हम राज़ी हैं इस बात पर कि ये हमारा फैसला करें”

फैसला ये हुआ कि आप स.अ. ने एक चादर मंगवाई और हजरे अस्वद ( काला पत्थर ) को उसमें रख कर ये फ़रमाया कि हर कबीले का सरदार चादर को थाम ले ताकि कोई कबीला इस शरफ से महरूम न रहे | जब सब उस चादर को उठाये हुए उस जगह पहुंचे जहाँ उसे रखना था तो नबी स.अ. ने खुद अपने हाथ से हजरे अस्वद ( काला पत्थर ) को उसकी जगह लगा दिया

चूंकि क़ुरैश की जमात के पास ज्यादा दौलत नहीं थी, इसलिए इस दोबारा की गयी तामीर में काबा की पूरी नींव शामिल नहीं थी जैसा कि पैगंबर इब्राहीम अ.स. ने बनाया था। काबा के जिस हिस्से को छोड़ा गया उसे अब हतीम ( Hateem )कहा जाता है।

चौथी बार अब्दुल्ला बिन जुबैर ने अपनी खिलाफत के ज़माने में बयतुल्लाह ( काबा ) को शहीद करके फिर से उसको बनवाया

हज़रत इब्न जुबैर पैगंबर इब्राहिम की नींव पर काबा बनाना चाहते थे जिस तरह से पैगंबर मुहम्मद स.अ. चाहते थे ।

इब्न जुबैर ने पैगंबर इब्राहिम की नींव पर काबा का निर्माण किया। उन्होंने ऊद की लकड़ी (खुशबूदार लकड़ी जो आम तौर से अरब में अच्छी खुशबू पाने के लिए जलाई जाती थी ) के साथ तीन खंभों पर छत डाल दी।

 

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उन्होंने दो दरवाजे लगाए, एक ने पूरब का सामना किया, दूसरा पश्चिम का सामना कर रहा था, जैसा कि पैगंबर चाहते थे लेकिन अपने ज़िन्दगी में नहीं किया था।

पांचवी बार हज्जाज बिन युसूफ ने खलीफा अब्दुल मलिक बिन मरवान की इजाज़त से इसको बनवाया

इस तामीर में जो बदलाव किये गए वो नीचे दिए जाते हैं :

उसको उस छोटे आकार में बनाया गया जो आज पाया जाता है

हतीम के हिस्से को बाहर निकाल दिया जिसको अब्दुल्ला बिन जुबैर ने अपने दौर में काबे के अन्दर करके बनवाया था

जब अब्दुल मलिक बिन मरवान उमरा के लिए आए और हदीस के बारे में सुना कि काबा जिस तरह से अब्दुल्ला इब्न जुबैर ने इसे बनाया था वैसी ही नबी स.अ. की ख्वाहिश थी तो , उन्हें इस पर बड़ा पछतावा हुआ ।

खलीफा हारुन भी फिर से बनवाना चाहते थे लेकिन

अब्बासी खलीफा हारुन अल रशीद काबा को फिर से बनवाना चाहते थे जिस तरह से पैगंबर मुहम्मद चाहते थे और जिस तरह से अब्दुल्ला इब्न जुबैर ने इसे बनाया था।

हिस्ट्री ऑफ़ काबा

लेकिन जब उन्होंने इमाम मलिक से सलाह ली, तो इमाम ने खलीफा से अपने मन को बदलने के लिए कहा क्योंकि लगातार गिराना और बनाना कोई अच्छी बात नहीं है और बादशाहों के हाथों का खिलौना बन जाएगा। हर शख्स काबा को गिराना और दोबारा तामीर करना चाहेगा।
इस सलाह की वजह से , हारुन रशीद ने काबा को दोबारा नहीं बनवाया ।

और करीबन 966 सालों तक कोई तामीर नहीं हुई ,बस यहां और वहां मामूली मरम्मत होती रही  । और इसके बाद भी कई बार तामीर हुई है |

 

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