Paigambar Muhammad Sons & Daughters Hindi|
नबी स.अ. के बेटे और बेटियां
अल्लाह के पैगम्बर मुहम्मद सल्लल लाहू अलैहि वसल्लम की फैमिली के बारे में बहुत कम मुस्लिमों को यह पता है कि उनके कितने बेटे और बेटियाँ हैं, या उनके नाम क्या हैं। चलिए आज जान ही लेते हैं
अल्लाह के रसूल की बेटियाँ
नबी की बेटियों चार थी, और वो सभी हज़रत खदीजा र.अ. से थीं और सब की पैदाइश मक्का में हुई थी |
पहली बेटी , हज़रत ज़ैनब
अल्लाह के रसूल की सबसे बड़ी बेटी थी वो पैदा हुईं जब अल्लाह के नबी उम्र 30 साल थी |
ज़ैनब का निकाह अपनी खाला के बेटे, अबूल आस बिन रबी से हुआ। । ज़ैनब ने इस्लाम अपनी मां खदीजा के साथ ही इस्लाम में दाखिल हुईं ,
लेकिन उनके शौहर अबूल आस अभी भी मक्का के काफिरों के साथ थे इसीलिए वो लोगों के साथ मदीना हिजरत कर नहीं आ पायीं | जंगे बदर में काफिरों के साथ अबुल आस क़ैद हो कर आए
और जब रिहा हुए उसी वक़्त वो नबी से ये कह गए थे कि वो जैनब को हिजरत की इजाज़त दे देगा | इस वजह से मदीना जाने को तैयार हुईं लेकिन हबार बिन अस्वद ने एक नेजा तान कर मारा जिससे हज़रत जैनब नीचे गिरीं और उनका हमल साकित हो गया | लेकिन वो किसी तरह मदीना अपने वालिद नबी करीम स.अ. की खिदमत में पहुँच गयीं और फिर उनका इन्तेकाल 8 हिजरी में हुआ उन्होंने अपने पीछे एक बेटी उमामा को छोड़ा |
और अबुल आस जब मुसलमान नहीं हुए थे तब काफिरों ने इस बात पर उनको बहुत उकसाया कि वो जैनब को तलाक़ दे दे लेकिन उन्होंने इनकार का दिया और फिर सय्यिदा ज़य्नब के मदीना जाने के कुछ दिनों बाद वो भी मुसलमान हो गए थे
दूसरी बेटी रूकय्या
हज़रत रुक्य्या की पैदाइश उस उस वक़्त हुई जब नबी की उम्र 33 साल थी
उनका निकाह मक्का में हज़रत उस्मान बिन अफ्फान से हुआ था
जब मक्का के काफ़िर ईमान वालों को तकलीफें देने और उन पर ज़ुल्म करने में हद पार कर रहे थे तब दोनों नबी स.अ. की इजाज़त से मुसलमानों के साथ हबश में रहने चले गए ।
हबश में, इस जोड़े को एक बेटे का तुहफा अल्लाह ने दिया जिसका उन्होंने अब्दुल्ला नाम रखा।
जब बद्र की जंग हुई, और अल्लाह के रसूल बदर की तरफ तशरीफ़ ले जा रहे थे उस वक़्त हज़रत रुकय्या बीमार थीं उन की तीमारदारी और देखभाल करने के लिए उनके शौहर हज़रत उस्मान को मदीना में छोड़ दिया था इसीलिए हज़रत उस्मान लड़ाई में शामिल नहीं हो पाए । लेकिन इसी बीमारी में रुकय्या का इन्तेकाल हो गया ।
जिस वक़्त हज़रत ज़ैद बिन हरिसा जीत की खुशखबरी ले कर मदीना आये थे उस वक़्त हज़रत रुकय्या को दफ़न किया जा रहा था | उनके बेटे अब्दुल्ला अपनी माँ के बाद दो साल तक जिंदा रहे उनकी उम्र छे साल थी कि उनका भी इन्तेकाल हो गया |
तीसरी बेटी उम्मे कुलसूम
हज़रत रुक्य्या के इन्तेकाल के बाद, अल्लाह के रसूल ने अपनी दूसरी बेटी की शादी हज़रत उस्मान र.अ. से 3 हिजरी में की ।
इसलिए, हज़रत उस्मान र.अ को जिन नूरैन (दो नूरों वाला ) भी कहा जाता था, क्योंकि उनके निकाह में अल्लाह के रसूल की दो बेटियां आयीं , एक ऐसी नेअमत जो किसी दुसरे के पास नहीं थी ।
लेकिन 9 हिजरी में उनका भी इन्तेकाल हो गया । उनके कोई बच्चे नहीं थे। उम्मे कुल्सुम को उनकी बहन रूकय्या के बगल में दफन कर दिया गया था ।
चौथी बेटी सय्यिदा फातिमा
फातिमा अल्लाह के रसूल की सबसे छोटी बेटी थी । “ज़हरा” और “बतूल” ये दोनों आप के लक़ब थे |
उनका निकाह बदर के वाकिये के बाद उहद से पहले , अल्लाह के रसूल ने हज़रत अली र.अ. से कर दिया था ।
हज़रत फातिमा की पांच औलाद हुईं
1. हसन
2. हुसैन
3. मुहसिन
4. उम्मे कुलसूम
5. जैनब
सिवाए हज़रत फातिमा के किसी और साहबजादी से नबी स.अ. की नस्ल का सिलसिला नहीं चला |
हज़रत आयेशा र.अ. फरमाती हैं कि हज़रत फातिमा बातचीत में बिलकुल नबी स.अ. की तरह थीं |
नबी स.अ. की वफात के 6 महीने बाद रमजान 11 हिजरी में हज़रत फातिमा ने इन्तेकाल फ़रमाया
अल्लाह के रसूल के बेटे
सबसे पहले बेटे कासिम
सबसे बड़े बेटे का नाम कासिम था। जो हज़रत खदीजा से थे जब वो पावों पर चलना सीख गए थे और दो साल के थे तभी उन का इन्तेकाल हो गया |
दुसरे बेटे “अब्दुल्ला”
अब्दुल्ला को “तय्यब” और “ताहिर”का नाम भी दिया गया था, उन की पैदाइश नुबुव्वत के आठवें साल मक्का में हुई थी। और मक्का में ही वफात हुई |
इन्ही की इन्तेकाल पर काफिर ये समझ रहे थे की बेटा नहीं बचा तो अब मुहम्मद का कोई नाम लेवा नहीं रहेगा | इसी बात पर सूरह कौसर नाजिल हुई थी | हालाँकि उन काफिरों की औलादों का जिन पर उन्हें गुरूर था उन्ही का कोई नाम लेवा नहीं और हमारे नबी के नाम लेवा आज किसी से छुपे नहीं |
तीसरे बेटे “इब्राहिम”
हज़रत इब्राहिम लंबे समय तक जिंदा नहीं रहे। वह 17 या 18 महीने की उम्र में हिजरत के बाद दसवें साल इन्तेक़ाल हो गया। अल्लाह के रसूल अपने छोटे बेटे की मौत पर बहुत दुखी थे । जब हज़रत इब्राहिम का इन्तेक़ाल हुआ, तो अल्लाह के रसूल ने कहा,
“हकीक़त में, यह आँखें आँसू बहाती हैं और यह दिल दुखी है, लेकिन जुबान से हम ऐसा कुछ नहीं कहते हैं जो हमारे अल्लाह को नाराज करता है। हकीक़त में, हम, ए इब्राहिम, तुम्हारी जुदाई पर दुखी हैं। “(बुखारी)
अगर हम अल्लाह के रसूल की ज़िन्दगी पर एक नज़र डालते हैं, तो हमें सीखने के लिए बहुत सारे सबक मिलेंगे । अल्लाह ने नबी को बेटे और बेटियाँ दिए । लेकिन अल्लाह ने बच्चों को एक-एक करके अपने पास बुला लिया ,और इस से पहले अल्लाह ने नबी के माँ, बाप, दादा, चचा को एक-एक करके तब बुला लिया जब नबी को उनकी ज़रूरत थी ।
एक के बाद ग़मों का सैलाब नबी पर पड़ता गया और नबी स.अ. चूंकि पूरी इंसानियत के लिए नमूना थे इसलिए अल्लाह की मसलिहत को सामने रखते हुए इन ग़मों पर सब्र किया और पूरी दुनिया को ये सबक दिया कि अगर कोई मुसीबत तुम पर पड़े तो उस पर सब्र कैसे करना है |
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मद व अला आलि मुहम्मद
Ya Allah De Hamen Neki Duniya aur aakhirat mein
Aur bacha Hamen dojak ki Aag se
Masa Allah