Soorah Al-Ma’un Hindi
सूरह माऊन ( अरा अयतल लज़ी ) और उसकी तशरीह
सूरह माऊन मक्की सूरत है और इस में सात आयतें हैं
तर्जुमा ( Translation )
1. क्या आप ने उस शख्स से देखा, जो जजा और सज़ा के दिन को झुटलाता है
2. ये वही तो है जो यतीम को धक्के देता है
3. और मुहताज को खाना खिलाने पर नहीं उभारता
4. तो ऐसे नमाज़ पढने वालों के लिए बर्बादी है
5. जो अपनी नमाज़ से गाफिल रहते हैं
6. जो दिखावा करते हैं
7. और जो मामूली चीज़ें देने में भी रुकावट डालते हैं
तफ़सीर व तशरीह सूरह माऊन
इस सूरह में अल्लाह तआला ने 6 बातों की मज़म्मत की है उनको नापसंद फ़रमाया है
उन में से कुछ बातें तो आम काफिरों में पायी जाती थीं और कुछ बातें मुनाफिक़ीन में
“काफिर” और “मुनाफ़िक़” किसे कहते हैं
( इस्लाम में जिन बातों पर ईमान लाना ज़रूरी है उन में से किसी एक बात के भी न मानने या इनकार करने वाले को काफिर कहते हैं )
( मुनाफ़िक़ उस को कहते थे जो ऊपर से अपने आप को मुसलमान बताते थे लेकिन अन्दर से वो मुसलमान नहीं थे और मुसलमानों से नफरत रखते थे )
पहली तीन आयतों में क्या फ़रमाया गया है
पहली तीन आयतों में तीन बातें काफिरों से मुताल्लिक हैं
क़यामत का इनकार : क्यूंकि कि मक्का के काफिर आम तौर से क़यामत का इनकार करते थे इसलिए तमाम काफ़िर को इस आयत में मुखातिब किया गया है |
यतीमों को धक्का देना : अबू सुफियान के बारे में ज़िक्र है कि वह हर हफ्ते एक ऊंट ज़बह किया करता था लेकिन एक यतीम ने उस से माँगा तो लाठी से उसकी खबर ली और यतीमों के साथ एक और बड़ा ज़ुल्म ये था कि विरासत में उन को कुछ नहीं दिया जाता था |
खाना खिलने की तरगीब न देना : यानि की गरीबों को खिलाने पर दूसरों को न उभारना | ज़ाहिर सी बात है कि जिस शख्स के अन्दर नरमी नहीं होगी वो न तो खिलाने पर दूसरों को उभारेगा और न ही खाना खिलाएगा और फिर ये सब न करने का वो लोग बहाना ये बनाते थे कि “हम उन को कैसे खिलाएं अगर अल्लाह चाहता तो खुद उनको खिला देता” सूरह यासीन में इस का ज़िक्र आया है |
अगली चार आयतों में
आगे की चार आयतों में तीन बातों का ज़िक किया गया है जो कि मुनाफिकीन से मुताल्लिक हैं
नमाज़ से ग़फलत : पहली ये की वो डर और शर्म में नमाज़ तो पढ़ लेते हैं लेकिन गफलत के साथ यानी कभी पढ़ी कभी नहीं पढ़ी कभी इतनी देर कर दी कि वक़्त निकल गया और पढ़ी तो इस तरह कि नमाज़ के अरकान को सही तरह से अदा नहीं किया |
दिखावा : यानी नमाज़ पढ़ी या ज़कात दी या कोई भी अच्छा अमल किया तो इससे उनका मकसद अमल नहीं सिर्फ उस अमल की नुमाइश और दिखावा होता था |
माऊन को रोक लेना : माऊन के बारे में हज़रत अब्दुल्ला बिन मसूद र.अ. और हज़रत अब्दुल्ला बिन अब्बास र.अ.का कौल है कि इस का मतलब वो घरेलु ज़रुरत की आम चीज़ें हैं जो एक दुसरे को इस्तेमाल के लिए दी जाती हैं जैसे पानी, बर्तन, गिलास लेकिन हज़रत अली और मुफस्सिरीन ने इसका मतलब ज़कात बताया है यानी इस आयत में ज़कात न देने पर अल्लाह ने नाराज़गी फरमाई है
मुसलमानों के लिए नसीहत
अल्लाह तआला की ये हिदायात जो इन आयातों में मौजूद हैं सिर्फ मुनाफिकीन और काफिरों के लिए नहीं बल्कि मुसलमानों के लिए भी हैं और जो कमियां ऊपर बताई गयीं वो मुसलमानों में सिरे से होनी ही नहीं चाहिए |
लेकिन बदकिस्मती से वो चीज़ें आज मुसलमानों में कसरत से पाई जा रही हैं | हालाँकि ये तमाम काम ऐसे लोगों के हैं जो आखिरत को नहीं मानते और दुनिया ही को उन्होंने सब कुछ समझ रखा है किसी सही मुसलमान से ऐसे कामों की उम्मीद नहीं की जा सकती |
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