Beti Ek Waqia Nazm Hindi Lyrics | बेटी, एक वाक़िया
एक वाकिया बतलाता हूं मैं मुल्के अरब का
वो दौर मदीने में था पैग़म्बरे रब का
इक अदमी दरबारे नबुववत में था हाज़िर
इमान की दौलत मिली वो पहले था काफिर
उस शख्स ने आका से कहा ऐ मेरे आका
जिस वक़्त मै काफ़िर था तब एक जुर्म किया था
जो मेरा क़बीला कहे वो मानता था मैं
बेटी की विलादत को बुरा जानता था मैं
घर मे मेरे पैदा हुई इक फूल सी बच्ची
पर मैंने उसे अपनी ही बे इज्ज़ती समझी
नफ़रत थी मुझे उससे मैं बेज़ार था उससे
लेकिन मेरी बीवी को बहुत प्यार था उससे
उस बच्ची ने इज्ज़त मेरी हर सिम्त उछाली
बेटी की विलादत पे मुझे मिलती थी गाली
बांहों में झुलाया न तो काधों पे बिठाया
मैंने न कभी बेटी को सीने से लगाया
चाहत ही नहीं थी कोई उल्फत ही नहीं थी
सीने में मेरे उसकी मुहब्बत ही नहीं थी
मासूम वो करती थी मोहब्बत के इशारे
और मैने इसी कर्ब मे कुछ साल गुज़रे
मैं सोचता रहता था उसे मार ही डालूं
खोइ हुई इज्जत को फिर एक बार मैं पा लूं
एक रोज़ उसे ले के निकल आया मैं घर से
वो बच्ची बहुत खुश थी मेरे साथ सफ़र से
वो तोतले अंदाज़ में करती रही बातें
सुनता रहा हंस हंस के मैं उस बच्ची की बातें
फरमाईशें करती रही वो सारे सफ़र में
जागी ना मुहब्बत ही मगर मेरे जिगर में
सहरा मे चला आया मैं बस्ती से निकल कर
बच्ची भी वहां पहुंची मेरे साथ ही चल कर
सुनसान जगह देख कर सरशार हुआ मैं
उस बच्ची की तद्फीन को तैयार हुआ मैं
तब मैंने ये सोचा कि यहीं कब्र बना लूं
और आज ही इस बच्ची से छुटकारा मैं पा लूं
जब मैंने किया एक गढ़ा खोदना जारी
उस वक़्त मेरे ज़ेहन पे शैतान था तारी
गरमी थी बहुत चूर हुआ जब मैं थकन से
उस वक़्त पसीना निकल आया था बदन से
मासूम सी बच्ची को तरस आ गया मुझ पर
हाथों ही से उस बच्ची ने साया किया मुझ पर
दम लेने को बैठा ज़रा मुझ सा कमीना
वो पोछ रही थी मेरे चेहरे का पसीना
रह रह के मेरा हाथ बटाती रही वो भी
और क़ब्र की मिट्टी को हटाती रही वो भी
मेरे नए कपड़ों पे लगी क़ब्र की मिट्टी
जो साफ़ किये जाती थी वो नन्ही सी बच्ची
तैयार हुइ क़ब्र तो बच्ची को उठाया
और मैने उसी क़ब्र में बच्ची को बिठाया
पहले तो वो खुश होती रही मेरे अमल पर
और खुद पे उलटती रही वो मिट्टी उठा कर
फिर खौफ़ से रोने लगी चिल्लाने लगी वो
हाथ अपने हिलाने लगी चिल्लाने लगी वो
रोती रही चिल्लाती रही फूल सी बच्ची
जब तक भी नज़र आती रही फूल सी बच्ची
उस दिन मेरी रग रग में था शैतान समाया
उस बच्ची पे थोडा भी मुझे रहम ना आया
ज़िन्दा ही उसे क़ब्र में दफना दिया मैंने
इक जान पे ये कैसा सितम ढा दिया मैंने
वो आदमी रोता रहा ये बात बता कर
उस शख्स के रुखसार भी अश्कों से हुए तर
एक दर्द से सरकार की आंखें हुई पुर नम
दिल थाम के रोते रहे सरकारे दो आलम
सरकार को जो बात रुलाये वो ग़लत है
अल्लाह को जो तैश दिलाये वो गलत है
सरकार को माना है तो सरकार की मानो
हर बात मेरे सैय्यदे अबरार की मानो
एक फ़र्ज़ मिला है तो उसे दिल से निभा लो
बेटी को मुहब्बत से दिलो जान से पालो
बेटी पे तो जन्नत की ज़मानत है खुदा की
ये बोझ नहीं है ये अमानत है खुदा की
अल्लाह कभी बेटी से नफ़रत न करो तुम
कनूने शरीअत से बगावत न करो तुम
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माशाअल्लाह