Juma Ki Fazilat
इस्लाम में जुमा के दिन की क्या अहमियत है ?
इस्लाम में जुमा के दिन को बड़ी फजीलत हासिल है ,नबी स.अ. का इशाद है कि
सूरज जिन दिनों पर निकलता है उन में सब से बेहतर जुमे का दिन है इसी दिन हज़रत आदम अ.स. की पैदाइश हुई, इसी दिन उन्हें जन्नत में भेजा गया और इसी दिन वो जन्नत से बाहर तशरीफ़ लाये और क़यामत भी इसी दिन कायम होगी |
जुमे के दिन की ख़ासियत
जुमे के दिन अल्लाह तआला ने एक ऐसी घड़ी एक ऐसा वक़्त रखा है जिस में जो भी दुआ मांगी जाये वो कुबूल होती है |
कुबूलियत की घडी कौन सी है ?
इस कुबूलियत की घड़ी को अल्लाह ने छुपा दिया है ताकि लोग ज्यादा से ज़्यादा वक़्त इबादत में खर्च करें लेकिन कुछ रिवायतों में इसका ज़िक्र मिलता है कि ये घडी जुमा के दिन अस्र से लेकर मगरिब के बीच होती है | इसलिए ख़ास तौर पर जुमे के दिन अस्र के बाद का वक़्त इबादत में, ज़िक्र में और दुआ में खर्च करना चाहिए |
जुमा के दिन किये जाने वाले आमाल
दुरूद शरीफ पढना
वैसे तो हर मुसलमान को अपने नबी मुहम्मद मुस्तफा स.अ. की ख़िदमत में दुरूद शरीफ़ का नज़राना पेश करते रहना चाहिए लेकिन जुमे के दिन इसका दुसरे दिनों के मुकाबले में ज्यादा पढना चाहिए |
सूरह कहफ़ पढ़ना
हर मुसलमान को जुमा दिन सूरह कहफ़ ज़रूर पढना चाहिए क्यूंकि नबी स.अ.ने फ़रमाया कि
जो शख्स जुमा के दिन सूरह कहफ़ पढ़े वो अगले आठ दिन तक हर फितने से महफूज़ रहेगा यहां तक कि दज्जाल निकल आये तो उसके फितने से भी महफूज़ रहेगा |
सूरह कहफ़ पढने के दो फ़ायदे
1.पहला फायदा ये है कि इससे अगले आठ दिन यानि अगले जुमे तक हर फितने से महफूज़ रहेगा ही साथ ही दज्जाल के फितने से भी हिफ़ाज़त होगी |
2. दूसरा फायदा ये है कि ये सूरह कब्र में अज़ाब से महफूज़ रखेगी
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