Hazrat Bilal Habshi R.A.
हजरत बिलाल हब्शी की ज़िन्दगी की 7 हकीक़तें
हज़रत बिलाल इब्ने रबाह (र.अ.) जिनको बिलाल हब्शी भी कहा जाता है ये उन सहाबा में से एक हैं जिनको पैगंबर मुहम्मद (स.अ.) सबसे ज़्यादा अज़ीज़ रखते थे । यहाँ हम हज़रत बिलाल (र.अ.) की ज़िन्दगी से रिलेटेड कुछ अहम् पहलुओं को बयान करेंगे ।
1. बिलाल इब्ने रबाह (र.अ.) को गुलाम के रूप में रखा गया था
बिलाल (र.अ.) को मक्का में गुलाम के रूप में रखा गया था। वह उमैया बिन ख़लफ़ के गुलाम थे।
2 हज़रत बिलाल का आका उमैय्या बिन खलफ इस्लाम का बहुत बड़ा दुश्मन था
इस्लाम का फैलना उमैय्या को बर्दाश्त नहीं हो रहा था। फिर भी, बिलाल (र.अ.) मुस्लिम हो गए, इसी वजह से उमैय्या बिन खलफ उनको बहुत तकलीफें देता था और इस्लाम छोड़ने के लिए मजबूर करता था। लेकिन अल्लाह पर बिलाल (र.अ.) का ईमान ऐसा था कि वो अपने मालिक की धमकियों से नहीं डरे, आखिर अल्लाह ने उससे उनको नजात दी |
3. ईमान लाने पर जानवरों से बद्तर सुलूक
अरब के रेगिस्तान में, गर्म रेत पर चमकते सूरज के नीचे बिलाल (र.अ.) को लिटाया जाता, फिर और तकलीफ़ बढ़ाने के लिए उनके जिस्म पर भारी गर्म चट्टानों को रखा गया। ताकि उनके जिस्म का पिछला हिस्सा गर्म रेत के कारण जले, जबकि जिस्म का ऊपरी हिस्सा गर्म पत्थर से जले । और हाल ये था कि भारी पत्थर की वजह से वो हिल भी नहीं पाते थे ।
4. कोड़ों की रातें
उनके इस ईमान ने उनके आका को गुस्सा दिलाया । और फिर उसने उसे हर रात उन्हें मारना शुरू कर दिया। उन्हें उमैया बिन ख़लफ़ और अबू जहल ने बेशुमार तकलीफें दीं।
5. हज़रत अबू बक्र (र.अ.) का उनको गुलामी से आज़ाद कराना
हज़रत बिलाल (र.अ.) की सज़ा समाप्त हुई जब हज़रत अबू बक्र (र.अ.) ने उनको ख़रीद कर आज़ाद कर दिया, फिर वो एक आज़ाद ज़िन्दगी बसर करने लगे |
6. बिलाल (र.अ.) इस्लाम के सबसे पहले मुअज्जिन ( अज़ान देने वाले ) थे
अल्लाह ने उनके इस अज़ीम सब्र का कुछ इस तरह इनआम दिया कि उन्हें नबी स.अ. की मस्जिद के लिए मुअज़्ज़िन बनाया गया।
7. बिलाल (र.अ.) का इन्तेक़ाल
पैगंबर (स.अ.) की वफ़ात के बाद, बिलाल (र.अ.) ने मदीना छोड़ दिया लेकिन कुछ दिनों के बाद वापस लौटे फिर आखिर में दमिश्क में 20 हिजरी में उनका इन्तेक़ाल ही गया । उनका मकबरा दमिश्क के एक कब्रिस्तान बाब अल सगीर में है।
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