Ramzan Ke Roze Ka Kaffara Kya Hai ?
कफ्फारा क्या है ? रोज़े तोड़ने पर जुर्माना
आप सभी जानते हैं कि माहे रमज़ान की फ़ज़ीलत और बरकत तमाम महीनों से ज्यादा है और इस महीने में अल्लाह ने रोज़े फ़र्ज़ किये हैं, और उसका बदला ख़ुद देने का ऐलान फ़रमाया है अगर कोई इस मुबारक महीने में रोज़ा जानबूझ कर तोड़ता है तो उसको कफ्फारा अदा करना पड़ता है यानि जुर्माना देना पड़ता है, वो कफ्फारा या जुर्माना क्या है चलिए देखते हैं |
कफ्फारा कब वाजिब होता है ?
1. जब रमज़ान का रोज़ा तोड़ा हो
यानि रमज़ान के अलावा किसी महीने में रोज़ा रखा हो तो कफ्फारा वाजिब नहीं
2. बगैर किसी शरई वजह के रमज़ान का रोज़ा तोड़ हो
शरई वजह यानि बीमार हो गया, भूल गया, या सफ़र की वजह से तोड़ा है तो सिर्फ क़ज़ा वाजिब होगी
( क़ज़ा रोज़े का मतलब बाद में एक रोज़े के बदले सिर्फ एक रोज़ा रखना होता है )
3. हमबिस्तरी की हो
यानि बीवी के साथ हमबिस्तर हो गया हो
रमजान के रोजे का कफ्फारा क्या है ?
जुर्माने के तौर पर आपको दिए गए इन 3 ऑप्शन में से एक को अंजाम देना पड़ेगा
1. या तो गुलाम या बांदी आज़ाद करे
इसका दौर तो अब रहा नहीं
2. या तो 2 माह मुसलसल रोजे रखे
लेकिन याद रहे अगर एक दिन भी नागा हो गया तो सिरे से फिर दो महीने के रोज़े रखने पड़ेंगे
3. या साठ (60) मिसकीनों को दो वक़्त खाना खिलाये
यानि अगर रोजा रखने की ताकत ना हो तो 60 मिसकीनों (गरीबों) को दो वक्त का खाना खिलाए
कफ्फारे के रोजों में अगर माहवारी जाये
किसी औरत पर (रोज़े तोड़ने की वजह से) कफ्फारा वाजिब हो जाए और इसी वजह से वह मुसलसल 2 माह के रोजे रख रही है, लेकिन बीच में माहवारी के दिन आ जाएं तो उन दिनों में रोजा ना रखे बल्कि माहवारी से पाक होकर सिर्फ बाक़ी रोजे पाक होने के बाद फौरन रखने शुरू कर दें सिरे से 60 रोज़े रखने की ज़रुरत नहीं |
और अगर दरमियान में निफ़ास ( यानि बच्चे की पैदाइश ) का खून आ जाए तो भी रोज़े न रखे बल्कि पाक होने के बाद बाक़ी रोज़े पूरे कर ले |
कफ्फारे के रोजे में बीमारी
अगर एक शख्स कफ्फारे के रोजे रख रहा था कि दरमियान में बीमार हो गया और कुछ रोजे छूट गए तो तंदुरुस्त होने के बाद फिर से दो महीने के रोजे रखे |
खाना खिलाने में तसलसुल (Continuity) जरूरी नहीं
अगर कोई कफ्फारे की वजह से फक़ीरों को खाना खिला रहा है तो दो वक्त मुसलसल खिलाना जरूरी नहीं है बल्कि दिन रात में खिलाया, या दोनों दिन रात का खाना खिलाए, या दिन ही दिन में खिलाये
अगर बीच में नागा हो जाए तो भी कुछ नहीं है बाद में पूरा कर ले हाँ ये जरूरी है कि पहले वक़्त जिन फक़ीरों को खिलाया हो दूसरे वक्त भी उन्हीं को खिलाएं |
एक ही ग़रीब को साठ दिन तक खाना खिलाना
अगर किसी ने 60 दिन किसी एक गरीब को दोनों वक्त बिठाकर खिलाया तो कफ्फारा अदा हो जाएगा या कफ्फारे में अनाज और उसकी क़ीमत 60 दिन तक का देते रहे तब भी कफ्फारा अदा हो जाएगा
अगर खाना न खिलाये बल्कि 60 फक़ीरों को कच्चा अनाज देदे वो भी जाएज़ है
लेकिन हर मिस्कीन को इतना दे जितना एक आदमी की तरफ से सदक़ा तुल फ़ित्र दिया जाता है या उसकी कीमत दे दे वो भी जाएज़ है |
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