Hazrat Nooh A.S. In Quran
हज़रत नूह अ.स. की दावत से क्या सबक़ मिला?
क्या आप जानते हैं कि जब से ये दुनिया बनी है तब से इस में कई बार बिगाड़ आया है और कई बार सुधार हुआ है, बिगाड़ तब आया जब लोगों अपने रब को भुला दिया और सिर्फ़ अपनी ख्वाहिश पूरा करने लगे उन्होंने सही देखा न ग़लत, जाएज़ देखा न नाजायेज़, हराम देखा न हलाल, बस अपनी ऐश परस्ती की धुन में वो शैतान की पैरवी करने लगे |
और सुधार तब आया जब लोगों के दरमियान पैग़म्बर आये और उन्होंने लोगों का तअल्लुक़ रब से जोड़ दिया, और बताया कि सही और जायज़ चीज़ों को इख्तियार करने से रब राज़ी होता है, और धरती पर अमनो शान्ति रहती है, और ग़लत चीज़ों को इख्तियार करने से रब नाराज़ होता है और ज़मीन पर फ़साद फ़ैल जाता है |
उन ही पैग़म्बरों में से हज़रत नूह (अलैहिस सलाम) हैं जिन्होंने ने लगभग 950 सालों तक अल्लाह की तरफ दावत दी और इस पूरे अरसे में लोगों को बताया कि एक अल्लाह को एक मानो और उसी की इबादत करो, वही ये हक़ रखता है कि उसके सामने सज्दा किया जाये, किसी दुसरे के सामने झुक कर अपने इंसान होने के एहतराम को नीलाम मत करो ,वगैरह
हमें हज़रत नूह (अलैहिस सलाम) की दावत से सबक़ हासिल करने चाहियें जिन्हें क़ुरान ने कुछ आयतों में बयान किया है
इसे ज़रूर पढ़ें
सूरह नूह : आयत न. 1
बेशक हम ने नूह (अलैहिस सलाम) को उनकी कौम के पास भेजा कि इस से पहले कि उनकी कौम पर दर्दनाक अज़ाब आये तुम अपनी कौम को ख़बरदार कर दो
सूरह नूह : आयत न. 2
हज़रत नूह (अलैहिस सलाम) ने अपनी कौम से कहा : ए मेरी कौम ! मैं तुम्हें साफ़ साफ़ डरा रहा हूँ ( ख़बरदार कर रहा हूँ )
सूरह नूह : आयत न. 3
कि अल्लाह ही की इबादत करो, उसी से डरो और मेरा कहा मानो
सूरह नूह : आयत न. 4
अल्लाह तुम्हारे गुनाहों को माफ़ फ़रमाएंगे ,और तुमको एक मुक़र्रर वक़्त तक मोहलत दे देंगे, यक़ीनन जब अल्लाह तआला का मुक़र्ररा वक़्त आ पहुंचेगा तो उसको टाला नहीं जा सकता, काश कि तुम समझ जाओ
सूरह नूह : आयत न. 5
(फिर जब कौम ने बात न मानी तो) उन्होंने कहा ए मेरे रब ! मैं अपनी कौम को दिन रात (दीने हक़ की तरफ़) बुलाता रहा
सूरह नूह : आयत न.6
वो मेरे बुलाने पर और ज़्यादा भागते ही रहे
सूरह नूह : आयत न. 7
मैंने जब जब उनको बुलाया ताकि आप उनको आप बख्श दें तो उन्होंने अपने कानों में उँगलियाँ ठूंस लीं, और अपने कपड़े अपने ऊपर लपेट लिए,वो अपनी बात पर अड़े रहे और उन्होंने बड़ी अकड़ दिखाई
सूरह नूह : आयत न. 8
फिर मैंने उनको पुकार पुकार कर दावत दी
सूरह नूह : आयत न.9
फिर मैंने उनको खुलकर भी बुलाया और चुपके चुपके भी उनको समझाया
सूरह नूह : आयत न.10
मैंने कहा कि अपने रब से माफ़ी मांगो वो बड़े बख्शने वाले हैं
सूरह नूह : आयत न.11
वह तुम पर आसमान से मूसलाधार बारिश नाजिल फरमायेंगे
सूरह नूह : आयत न.12
और तुम्हारे माल और औलाद में तरक्क़ी देंगे, और तुम्हारे लिए बगात पैदा कर देंगे, तुम्हारे लिए नहरें जारी फरमा देंगे
सूरह नूह : आयत न.13
तुम्हें क्या हो गया है कि तुम्हें अल्लाह की अज़मत का कुछ ख्याल ही नहीं
सूरह नूह : आयत न.14
हालांकि कि उसने तुमको कई मरहलों से गुज़ार कर पैदा फ़रमाया है
सूरह नूह : आयत न.15
क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने किस तरह सात आसमान ऊपर तले बनाए
सूरह नूह : आयत न.16
और उन में चांद को रोशनी बनाया सूरज को चमकता हुआ चिराग़ बनाया
सूरह नूह : आयत न.17
और अल्लाह ही ने तुमको जमीन से पैदा फ़रमाया है
सूरह नूह : आयत न.18
फिर तुमको उसी ज़मीन में ले जायेंगे और (क़यामत में फिर ) तुमको बाहर निकाल खड़ा करेंगे
सूरह नूह : आयत न.8
और अल्लाह ने जमीन को तुम्हारे लिए फ़र्श बना दिया है
सूरह नूह : आयत न. 20
ताकि तुम उसके खुले हुए रास्तों पर चलो
सूरह नूह : आयत न. 21
हज़रत नूह (अलैहिस सलाम) ने कहा : ऐ मेरे परवरदिगार ! इन लोगों ने मेरा कहा नहीं माना, और उन सरदारों के पीछे चल पड़े जिनको उनके माल और औलाद ने सिवाय नुकसान के और कुछ ना दिया
सूरह नूह : आयत न. 22
और उन्होंने बड़ी बड़ी साज़िशें भी कीं
सूरह नूह : आयत न. 23
और (अपने आदमियों से) कहा कि : अपने माबूदों को हरगिज़ मत छोड़ना, न वुद और सुवाअ को किसी हाल में छोड़ना, और न यगूस, यऊक़ और नस्र को छोड़ना
सूरह नूह : आयत न. 24
इस तरह उन्होंने बहुतों को गुमराह कर दिया इसलिए (ए रब) आप भी उनको गुमराही के सिवा किसी और चीज़ में तरक्क़ी न दीजिये
सूरह नूह : आयत न. 25
उन लोगों के गुनाहों की वजह ही से उन्हें डुबो दिया गया, फिर आग में दाख़िल किया गया फिर उन्हें अल्लाह को छोड़ कर कोई मदद्गार नहीं मिला
सूरह नूह : आयत न. 26
और हज़रत नूह (अलैहिस सलाम)ये भी कहा कि मेरे रब ! ज़मीन पर इन काफ़िरों में से एक बसने वाले को भी न छोड़िये
सूरह नूह : आयत न. 27
क्यूंकि अगर आप उनको छोड़ेंगे तो वो आपके बन्दों को गुमराह कर देंगे और उन से जो औलाद होगी वो भी बद्कार और नाशुकरी होगी
सूरह नूह : आयत न. 28
ए मरे परवरदिगार ! मुझ को और मेरे वालिदैन को, और जो मुसलमान होकर मेरे घर में दाखिल हुआ उसको, और तमाम मुसलमान मर्दों और औरतों को माफ़ फरमा दीजिये और जो लोग ज़ालिम हैं उनको तबाही के सिवा और कोई चीज़ न अता फ़रमाइए
हम जब भी क़ुराने पाक पढ़ते हैं तो ये बात समझ आती है कि जिस क़ौम में और जिन लोगों में पैगंबर भेजे गए थे, उन लोगों का रवैया हमेशा वैसा ही रहा जैसा कि मक्का के लोगों का रवैया हज़रत मुहम्मद स.अ. के साथ था |
हज़रत नूह अ.स. अपनी कौम की तरफ़ से लगातार इनकार सुनते रहे और लोग उनको हल्के में लेते रहे लेकिन इन सब के बावजूद, आप अपने लोगों को बहुत ही सब्र के साथ साढ़े नौ सौ सालों तक इस्लाम और सलामती की तरफ़ बुलाते रहे। लेकिन हर पीढ़ी ने हज़रत नूह अ.स. की बात को मानने से इनकार कर दिया जैसे उनके बाप दादा ने किया था वो चन्द लोग ही थे जिन्होंने आपकी दावत पर लब्बैक कहा था।
अल्लाह तआला हमें सबक़ लेने की तौफ़ीक़ अता फरमाए