30 Common Mistakes In Ramadan |
30 गलतियाँ जो रमज़ान में नहीं करनी चाहिए
रमज़ान (Ramzan) एक मुबारक महीना है जिसमें अल्लाह तआला ने अपने बंदों पर बेशुमार रहमतें और बरकतें नाज़िल करते हैं। ये महीना इबादत, पाकीज़गी, रूहानियत हासिल करने का और गुनाहों से तौबा करने का बेहतरीन मौका है। लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि बहुत से मुसलमान नादानी या ग़फ़लत की वजह से ऐसे काम कर बैठते हैं जो रमज़ान की बरकतों से महरूम कर देते हैं और जिनसे रमज़ान का मक़सद हासिल ही नहीं होता है।
इसलिए ज़रूरी है कि हम रमज़ान में होने वाली आम गलतियों को समझें और उनसे बचने की कोशिश करें ताकि ये पाक महीना हमारे लिए मग़फ़िरत और रहमत का ज़रिया बन जाये । तो आइए, हम अपने रोज़े और इबादत को मुकम्मल और मक़बूल बनाने के लिए जानें कि कौन हैं वो 32 गलतियाँ जो रमज़ान में नहीं करनी चाहिए (32 Common Mistakes In Ramadan)
30 Common Mistakes In Ramadan | 30 गलतियाँ जो रमज़ान में नहीं करनी चाहिए
(1) फज्र की अज़ान के बाद भी खाना जारी रखना
• फज्र की अज़ान के बाद सहरी खत्म हो जाती है।
• उसके बाद खाने या पीने से रोज़ा टूट जाता है।
(2) ज़कात अदा करने में देरी करना
• ज़कात फर्ज़ है, इसे देरी से अदा करना गुनाह है।
(3) तिलावत-ए-कुरआन को छोड़ देना या कम करना
कुरआन रमज़ान में ही उतरा है और रमज़ान में इसकी तिलावत को बहुत अज़ीम इबादत माना गया है इसीलिए बड़े बड़े बुज़ुर्गाने दीन इस महीने में दूसरी इबादतों को कम करके कुरआन की तिलावत सब से ज़्यादा करते थे |
(4) सहरी जल्दी करना या छोड़ देना
• सहरी को आखिरी वक्त तक करना सुन्नत है।
• सहरी न करने से रोज़े की ताकत कम हो जाती है।
(5) इफ्तार में देरी करना
• इफ्तार को देर से करना सुन्नत के खिलाफ है।
• सूरज डूबते ही इफ्तार कर लेना चाहिए।
(6) इफ्तार के बाद ये दुआ न पढ़ना
ذَهَبَ الظَّمَأُ وَابْتَلَّتِ الْعُرُوقُ وَثَبَتَ الْأَجْرُ إِنْ شَاءَ اللَّهُ
“ज़हबज़ ज़मऊ वब्तल्लतिल उरूकु व-सबतल अज्रु इंशा अल्लाह”
“प्यास बुझ गई, नसें तर हो गईं और इंशाअल्लाह सवाब मुकम्मल हो गया।”
(अबू दाऊद: 2357)
(7) इफ्तार में हद से ज़्यादा खाना
• इफ्तार में ज़्यादा खाना रोज़े के मकसद को खत्म करता है।
• ज्यादा खाने से सुस्ती आती है।
(8) तरावीह को बोझ समझना और जल्दी-जल्दी पढ़ना
• तरावीह इत्मीनान और सुकून से पढ़नी चाहिए।
• जल्दी पढ़ने से सवाब में कमी होती है।
(9) तरावीह के दौरान बातचीत करना
• तरावीह के वक्त इमाम के पीछे बैठ कर बातचीत करना इबादत के खिलाफ है। इससे तवज्जो और यकसूई ख़त्म हो जाती है।
(10) शबे क़द्र सिर्फ 27वीं रात को ही समझना
• जब कि बताया गया है कि शबे क़द्र को रमज़ान की आखिरी 10 ताक रातों (21, 23, 25, 27, 29) में तलाश करो |
(11) रात भर जागना और फज्र की नमाज़ क़ज़ा कर देना
• रात भर जागने की वजह से फज्र की नमाज़ छूटना गुनाह है।
(12) दिन की दूसरी नमाज़ें भी छोड़ देना
• रमज़ान में फर्ज़ नमाज़ें छोड़ना बड़ा गुनाह है।
(13) ज़कात न अदा करना
• जिन पर ज़कात फर्ज़ है, उन्हें ज़रूर अदा करनी चाहिए।
(14) ज़कात की गलत कैलकुलेशन (हिसाब) करना
• ये ग़लती आम तौर से उन लोगों से हो जाती है जो ज़कात के बारे में ठीक से जानकारी नहीं रखते, कुछ ग़लत न हो इसलिए सही मालियत निकालकर ज़कात अदा करनी चाहिए।
• माल के 2.5% हिस्से की ज़कात देनी फर्ज़ है।
(15) ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई) करना
• कुरआन में है कि ग़ीबत ऐसा है जैसे अपने भाई का गोश्त खाना। (सूरह अल-हुजुरात: 12)
(16) झूठ बोलना
• झूठ बोलना रोज़े की रूह के खिलाफ है इसलिए इससे बचना चाहिए ।
(17) गाली देना या बदतमीज़ी करना
• रोज़े में ज़ुबान पर क़ाबू रखना ज़रूरी है।
(18) फोहश (अश्लील) बातों का इस्तेमाल करना
• अश्लील और गन्दी बातों से रोज़े की पाकीज़गी खत्म हो जाती है।
(19) गॉसिप करना
• गपशप और बेकार की बातों में टाइम बरबाद नहीं करना चाहिए, जिनका न दुनियावी कोई फ़ायदा और न ही आख़िरत का कोई फ़ायदा हो इससे रोज़े का मक़सद ख़त्म हो जाता है ।
(20) म्यूज़िक सुनना और अश्लील प्रोग्राम देखना
• अपने आँखों और कानों को भी हराम चीज़ों से बचा कर रखें, कानों और आँखों से कोई हराम चीज़ (जैसे म्यूजिक और गन्दे प्रोग्राम) दाख़िल न हो क्यूंकि हराम चीज़ें रोज़े की पाकीज़गी को खत्म करती हैं।
(21) ग़लत किताबें पढ़ना
• ग़लत किताबें पढ़ना मना है।
(22) ग़लत वेबसाइट्स पर जाना
• हराम वेबसाइट्स पर जाना गुनाह है।
(23) फिजूलखर्ची और खाने की बर्बादी करना
• फिजूलखर्ची करने वाले शैतान के भाई हैं और खाने की बर्बादी से अल्लाह नाराज़ होते हैं।
(24) दिन में सोना और रात में जागना
• दिन में सोना और रात में जागना रोज़े के मक़सद के खिलाफ है।
(25) बेकार की सोशलाइज़िंग करना
• रमज़ान का वक्त इबादत के लिए है इसको इधर उधर घूम कर बरबाद न करें बल्कि अल्लाह से अपना ताल्लुक़ मज़बूत करें ।
(26) वक़्त को खेल और मनोरंजन में बर्बाद करना
• वक़्त का सही इस्तेमाल रोज़े के दौरान इबादत में ही होता है ।
(27) गुस्सा करना और दूसरों पर चिल्लाना
रोज़े के दौरान गुस्सा करना और दूसरों पर चिल्लाना रोज़े की पाकीज़गी को खत्म कर सकता है। हदीस में आता है:
“जब तुम में से कोई रोज़ा रखे तो उसे न बदतमीज़ी करनी चाहिए और न ही शोर मचाना चाहिए। अगर कोई उसे गाली दे या उससे झगड़ा करे तो उसे कहना चाहिए कि मैं रोज़े से हूँ।”
(सहीह बुखारी: 1904)
(28) इफ्तार पार्टियों में ज़्यादा खर्च करना
• दिखावे के लिए इफ्तार पार्टियाँ करना गलत है बल्कि ऐसे लोगों को इफ्तार ज़रूर करना चाहिए जिनके पास इफ़्तार और सहरी के लिए शायद इन्तेजाम नहीं हो पाता तो उन्ही के बारे में नबी करीम ﷺ ने फरमाया:
“जो किसी रोज़ेदार को इफ्तार करवाएगा, उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब मिलेगा।”
(सुनन तिर्मिज़ी: 807)
(29) खाना पकाने में औरतों पर बोझ डालना
• घर की औरतों को ज़रूरत से ज़्यादा काम में जैसे इफ़्तार और सहरी के किस्म किस्म पकवान में लगाना गलत है क्यूंकि इससे उनको नमाज़ों और इबादत के लिए वक़्त नहीं मिल पाता है ।
(30) आख़िरी 10 दिनों को शॉपिंग और ईद की तैयारी में बर्बाद करना
• आखिरी 10 दिन इबादत के लिए हैं इसीलिए इसमें शबे क़द्र रखी गयी है और ख़ास कर ईद का चाँद निकलते ही लैलतुल जाइज़ह (इनाम की रात) शुरू हो जाती है जिसमे रोज़ेदारों को पूरे महीने के नेक कामों का इनाम मिलता है और दुआएं क़ुबूल होती है तो इसको तो बिलकुल भी न छोड़ें ।
कुल मिला कर रमज़ान का मक़सद सिर्फ भूख-प्यास सहना नहीं, बल्कि अपने नफ़्स की इस्लाह करना है तक़वा (परहेज़गारी) और अल्लाह की क़ुरबत हासिल करना है। इसलिए रमज़ान में नेकियों की तरफ़ बढ़ो, ग़लतियों और गुनाहों से बचो और अल्लाह की रहमत और मग़फ़िरत को हासिल करो।