Islamic Story Hindi

A Very Beautiful Islamic Story Hindi | और मेरा घर सुकून से भर गया….

A Very Beautiful Islamic Story Hindi

और मेरा घर सुकून से भर गया….

वो गर्मियों की तपती दोपहर थी, दफ़्तर से मैंने छुट्टी ली हुई थी, क्यूंकि घर के कुछ ज़रूरी काम निपटाने थे, मैं बच्चों को घर पर गेम खेलना सिखा रहा था कि बाहर बेल बजी, कुछ देर के बाद फिर दूसरी बेल हुई तो मैंने जाकर दरवाज़ा खोला,

तो सामने मेरी ही उम्र के एक साहब खड़े हुए थे, उन्होंने निहायत तहज़ीब के साथ सलाम किया : अस्सलामु अलैकुम

पहले तो मेरे जहन में खयाल गुजरा कि यह कोई चंदा वगैरा लेने वाले हैं, हालाँकि उनके चेहरे पर दाढ़ी खूब सज रही थी और लिबास से वह चंदा मांगने वाले हरगिज़ नहीं लग रहे थे

मैंने कहा : जी फरमाइए

उन्होंने पुछा : आप ताहिर साहब है

मैंने जवाब दिया : जी

उन्होंने कहा : वह मुझे रफीक साहब ने भेजा है कि आपको किराएदार की जरूरत है

मुझे अचानक याद आया कि मैंने दफ्तर के एक दोस्त ताहिर को बता दिया था कि मैंने अपने घर का ऊपर वाला पोर्शन किराए पर देना है इसलिए अगर कोई नेक और छोटी सी फैमिली उसकी नजर में हो तो बताइए

मैंने कहा : हां हां

मुझे अफसोस हुआ कि मैंने इतनी धूप में काफ़ी देर उसे बाहर खड़ा रखा, उसे छह माह के लिए मकान किराए पर चाहिए था, क्योंकि अपना मकान गिरा कर दोबारा तामीर करवा रहे थे मैंने 3000 किराया बताया, लेकिन बात दो हजार पर पक्की हो गई

वह चला गया तो मुझे अफसोस होने लगा कि किराया कुछ कम है, वह ऊपर सिर्फ एक छोटा सा कमरा किचन और बाथरूम था मुझे अपनी बीवी का धड़का लगा हुआ था कि उसे मालूम होगा तो कितना झगड़ा होगा और वही हुआ, उसने कहा कि दो हजार तो सिर्फ बच्चों की फीस है और फिर मुझे उसने बुरा भला कहा और मैं चुपचाप सुनता रहा और अपनी क़िस्मत को कोसता रहा

मैंने M.S.C. बहुत अच्छे नंबरों से किया था इसलिए जल्दी नौकरी मिल गई, और नौकरी मिली तो फ़ौरन शादी भी हो गई, मेरी बीवी भी बहुत पढ़ी लिखी थी वह भी एक अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाती थी, हमारे तीन बच्चे थे मगर गुजारा मुश्किल से होता था

अगले ही दिन वह साहब और उनकी बीवी बच्चे हमारे घर शिफ्ट हो गए, उनकी बीवी ने मुकम्मल शरीअत के मुताबिक़ परदा किया हुआ था, दोनों बड़े बच्चे बहुत तहज़ीब वाले और खूबसूरत थे, छोटा गोद में था

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कुछ दिनों बाद एक दिन मैं दफ्तर से आया तो मेरी बीवी ने बताया कि मैंने बच्चों को किराएदार खातून से कुरान ए मजीद पढ़ने के लिए भेज दिया है, वो अच्छा पढ़ाती हैं उनके अपने बच्चे इतनी खूबसूरत तिलावत करते हैं, उस दिन जब मैंने उनके एक बेटे से क़ुरान की तिलावत सुनी तो मेरे दिल में ये ख्वाहिश उभरी कि काश हमारे बच्चे भी ऐसी ही तिलावत करते

एक दिन मैं बाहर जाने लगा तो अपनी बीवी से पूछ लिया कि वह पार्लर जाएगी तो लेते चलूँ क्योंकि पहले तो वह महीने में तीन चार मर्तबा पार्लर जाती थी और इस महीने में एक बार भी नहीं गई थी तो उसने जवाब दिया कि पार्लर फ़िजूलखर्ची है जितनी खूबसूरती चेहरे पर 5 बार नमाज़ पढ़ने से आती है किसी चीज से नहीं आती अगर ज्यादा जरूरत हो तो घरेलू इस्तेमाल की चीजों ही से चेहरे पर निखार रहता है

एक रोज में केबल पर ड्रामा देख रहा था तो मेरे छोटे बेटे ने मुझ से बगैर पूछे टीवी बंद कर दिया, और मेरे पास आकर बैठ गया कहने लगा “बाबा यह सब बेकार चीज़ है मैं आपको अपने नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का वाक़िया सुनाऊँ” मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन अपने बेटे की जुबानी जब वाक़िया सुना तो मेरा दिल भर आया और मैंने उससे पुछा : यह तुम्हें किसने बताया उसने कहा हमारी उस्तानी ने जो हमें क़ुरान शरीफ़ पढ़ाती हैं वो क़ुरान मजीद पढ़ाने के बाद हमें हमारे नबी और सहाबा के किस्से सुनाती हैं

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अपने घर की और बीवी बच्चों की बदलती हालत देख कर मैं हैरान हो रहा था कि एक रोज़ मेरी बीवी ने कहा : केबल कटवा दें कोई नहीं देखता वैसे भी फ़िजूलखर्ची है और गुनाह है

उसने कई दिनों के बाद शॉपिंग का कहा था मैं ख़ुशी से तैयार हो गया और पुछा : ख़रीदना क्या है तो उसना कहा “मैं पहले कितने शरीअत के ख़िलाफ़ काम करती थी आपने कभी मजाक नहीं उड़ाया था आज अच्छा काम करना चाहती हूँ तो मजाक सूझ रहा है” मैं कुछ ना बोला

फिर कुछ दिनों बाद उसने मुझे बहुत सारे पैसे दिए और कहा “फ्रिज की बाक़ी कीमत अदा कर दें ताकि और हमें किस्तें न देनी पड़ें” वो मुस्कुराई, जब इंसान अल्लाह के बताए हुए काम पर चलने लगे तो बरकत हो जाती है यह भी किराएदार खातून ने बताया है ।

सुकून मेरे अंदर तक फैल गया मेरी बीवी अब मुझ से न कभी लड़ती है और न ही कभी शिकायत करती है, बच्चों को वह घर में पढ़ा देती है, क्यूंकि वो भी बच्चों के साथ क़ुराने मजीद पढ़ना सीख रही थी और खुद नमाज भी पढ़ने लगी थी, और बच्चों को सख्ती से नमाज पढ़ने भेजती,

मुझे एहसास होने लगा कि नजात का रास्ता यही तो है, पैसा और ऐशोआराम सुकून नहीं देता, इत्मीनान तो बस अल्लाह की याद में और उसके हुक्मों पर अमल करने में है, मुझे इस दिन दो हजार किराया थोड़ा लग रहा था, आज सोचता हूं तो लगता है कि वह तो इतना ज्यादा था कि आज मेरा घर सुकून से भर गया।

आप को ये स्टोरी कैसी लगी कमेन्ट सेक्शन में ज़रूर बताएं

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