About Prophet Muhammad Hindi |
पैगम्बर मुहम्मद स.अ. के अखलाक़
पैगम्बर मुहम्मद सल्लल लाहू अलैहि वसल्लम के अखलाक़
एक ऐसे मुल्क में जहाँ न कोई हुकूमत हो और न कोई कानून , जहाँ बात बात पर क़त्ल करना किसी का खून बहाना मामूली बात थी ऐसे माहौल में नबी के अखलाक़ की चमक ज़ाहिर हुई तो न सिर्फ उसने लोगों के दिलों को रौशन किया बल्कि आप स.अ. की ज़िन्दगी के वाकिआत हर मुल्क, हर तब्के के लोगों के लिए बेहतरीन नमूना और मिसालबं गए |
खामोशी और बात करना
नबी करीम स.अ. अक्सर खामोश रहा करते थे बगैर ज़रुरत किसी से बात न करते थे और बातों में मिठास थी तल्खी और कड़वाहट ज़रा न थी | गुफ्तगू ऐसी दिलनशीं होती थी सुनने वाले के दिल और रूह पर क़ब्ज़ा कर लेती थी और नबी की ये खूबी ऐसी थी कि मुख़ालिफ़ ( दुश्मन ) लोग भी इस की गवाही देते थे और दुश्मन इसी को जादू का नाम दे दिया करते थे |
हँसना और रोना
नबी करीम स.अ कभी खिलखिला कर हँसना पसंद न करते थे और तबस्सुम ( मुस्कराहट ) ही आपका हँसना था |
तहज्जुद की नमाज़ में नबी स.अ. रो पड़ते थे |
और कभी किसी के मरने पर आँखें नम हो जाती थीं |
नबी करीम स.अ के बेटे इब्राहीम बचपन में ही गुज़र गए | जब उन्हें कब्र में रखा गया तो आप स.अ. की आँखों में आंसू भर आये तो हज़रत साद र.अ. अर्ज़ किया या रसूलल लाह ! ये क्या ? तो नबी स.अ. ने फ़रमाया : ये वो रहम दिली है जो खुदा अपने ननदों के दिलों में भर देता है और अल्लाह भी अपने उन्हीं बन्दों पर रहम करेगा जो रहम दिल हैं |
खाने के मुताल्लिक क्या फ़रमाया
रात को भूका सोने से मना फरमाते और ऐसा करने को बुढ़ापे की वजह बताते थे |
खाना खाते ही सो जाने से मना फरमाते थे |
कम खाने की तरफ तवज्जो दिलाते |
फ़रमाया करते कि मेदे ( पेट ) का एक तिहाई हिस्सा खाने के लिए एक तिहाई हिस्सा पानी के लिए और एक तिहाई हिस्सा खुद मेदे ( सांस ) के लिए छोड़ देना चाहिए |
मर्ज़ और मरीज़
फैलने वाली बीमारियों से बचाओ रखते थे और तन्दुरुस्तों को इह्तियात से रहने का हुक्म फरमाते बीमार को माहिर हकीम से इलाज का हुक्म फरमाते थे और परहेज़ का हुक्म देते थे हराम चीज़ों को दावा के तौर पर लेने से मना फरमाते और इरशाद फरमाते अल्लाह ने हराम चीज़ों में तुम्हारे लिए शिफा नहीं रखी है |
बीमारों की अयादत
कोई बीमार पड़ता तो उसकी तबियत पूछने ज़रूर जाते और मरीज़ के करीब बैठ कर उसको तसल्ली देते , मरीज़ को पूछ लाते कि किस चीज़ को दिल चाहता है अगर वो चीज़ उसको नुकसान न पहुंचती तो उसका इंतज़ाम कर दिया करते , एक यहूदी लड़का नबी स.अ. की खिदमत किया करता उसकी बीमारी के वक़्त उसकी अयादत के लिए गए |
सदक़ा व हदया
सदक़ा की कोई चीज़ हरगिज़ इस्तेमाल न करते हाँ हदिया ( गिफ्ट ) होता तो कुबूल फरमा लेते |
सहाबा या यहूदी और इसाई जो चीज़ें तुह्फे में भेजते उनको कुबूल फरमा लेते और उनके लिए खुद भी तुह्फे भेजते मगर मुशरिकीन के तुह्फे से इनकार फरमाते |
जो कीमती तुह्फे नबी स.अ.के पास आया करते अक्सर उन्हें अपने सहाबा में बाँट दिया करते |
बच्चों पर मेहरबानी
बच्चों के करीब से गुज़रते तो उनको “अस्सलामु अलय्कुम” कहा करते उन्हें गोद में उठा लेते |
बूढों पर शफ़क़त
फतह मक्का के बाद अबू बक्र सिद्दीक र.अ. अपने बूढ़े बाप को नबी स.अ. की खिदमत में इस्लाम कुबूल करवाने के लिए लाये तो नबी स.अ. ने
फ़रमाया तुम ने इन को तकलीफ क्यूँ दी मैं खुद उन के पास चला जाता |
खिदमत करने वाले के लिए दुआ
हज़रत अनस बिन मालिक र.अ. ने दस साल तक मदीना में नबी स.अ. की खिदमत की इस अरसे में ये कभी न कहा ये काम क्यूँ न किया और एक
दिन उन के लिए दुआ फरमाई ए अल्लाह ! इसे माल व औलाद खूब दे और जो कुछ अता किया जाये उस में भी बरकत दे |
आदाब व एटीकेट
मजलिस में कभी पाँव फैला कर नहीं बैठते |
जो कोई मिल जाता उसे सलाम पहले खुद कर लेते |
मुसाफा के लिए हाथ पहले खुद बढ़ाते |
बीच में किसी की बात कभी न काटते |
अगर नफ्ल नमाज़ में होते और कोई शख्स पास आ कर बैठ जाता तो नमाज़ को मुख़्तसर ( छोटी ) कर देते और उसकी ज़रुरत पूरी करने के बाद फिर नमाज़ में मशगूल हो जाते |
अक्सर मुस्कुराते रहते |
शफ़क़त व महेरबानी
हज़रत आयेशा र.अ. फरमाती हैं कि
कोई शख्स भी अच्छे अखलाक में नबी स.अ. के जैसा न था , चाहे कोई सहाबी बुलाता या घर का कोई शख्स नबी स.अ. ज़रूर तशरीफ़ ले जाते |
नफ्ल इबादत छुप कर अदा करते ताकि उम्मत पर ज्यादा इबादत भारी न हो |
जब किसी मामले में दो चीज़ें सामने आ जातीं तो आसान चीज़ को अपनाते |
फ़रमाया कि एक दुसरे की बातें मुझे न सुनाया करो , मैं चाहता हूँ कि जब मैं इस दुनिया से जाऊं तो सब की तरफ से दिल साफ़ कर हो कर जाऊं |
इन्साफ और रहम
अगर दो शख्सों के दरमियान झगडा होता तो इन्साफ फरमाते और अगर खुद अपने ( नबी ) साथ किसी ने कुछ किया तो उसको माफ़ फरमाते |
फातिमा नाम की एक औरत ने मक्का में चोरी की लोगों ने उसामा से नबी स.अ. को बहुत प्यारे थे से शिफारिश कराई तो नबी स.अ. ने फ़रमाया क्या
तुम अल्लाह की बनाई हुई हुदूद में शिफारिश करते हो सुनो अगर फातिमा बिन्त मुहम्मद भी चोरी करे तो उसके भी हाथ काटने का हुक्म देता |
दुश्मनों पर रहम
मक्का में सख्त भुकमरी के दिन थे यहाँ तक की लोग मुरदार और हड्डियाँ भी खाने लगे थे अबू सुफियान बिन हर्ब जो उन दिनों सख्त दुश्मन था |
नबी स.अ.की खिदमत ,में आया और कहा मुहम्मद स.अ. आप तो सिला रहमी ( रिश्तों को जोड़ना ) करते हैं और उसकी तालीम देते हैं देखिये आप की कौम हलाक हो रही है खुदा से दुआ कीजिये नबी ने दुआ फरमाई तो उसके बाद खूब बारिश हुई |
सुमामा बिन उसाल ने मक्का जाने वाला खाने पीने का सामान बंद कर दिया इस वजह से कि मक्का वाले नबी के दुश्मन हैं लेकिन जब नबी स.अ. को मालूम हुआ तो ऐसा करने से मना फरमा दिया |
सखावत
मांगने वाले को कभी खाली हाथ न लौटाते अगर कुछ भी देने को न होता तो मांगने वाले से ऐसे उज्र करते जैसे माफ़ी मांग रहे हों |
फ़रमाया करते अगर कोई शख्स कर्जे की हालत में मर जाये और अपने पीछे कोई माल न छोड़े तो हम उसे अदा करेंगे और अगर कोई माल छोड़ कर मरे तो वो वारिसों का हक है |
शर्मो हया
अबू सईद खुदरी र.अ. फरमाते हैं कि पर्दा नशीं लड़की से भी बढ़ कर नबी में हया थी |
माफ़ करना
हज़रात आयशा र.अ. फरमाती हैं कि खुद अपने पर किये गए ज़ुल्म का बदला नबी स.अ. ने कभी नहीं लिया |
हबार ने नबी स.अ. की बेटी को एक नेजा मारा वो ऊँट से नीचे गिर गयीं पेट का हमल साकित हो गया और यही सदमा हज़रत जैनब की वफात की वजह बना लेकिन जब हबार ने माफ़ी मांगी तो आप स.अ. ने उसे माफ़ कर दिया |
कैदियों की खबरगीरी
जंग में क़ैद किये जाने वालों की मेहमानों की तरह खिदमत की जाती थी | जंगे बदर में जो कैदी मदीना मुनव्वर में कुछ रोज़ तक मुसलमानों के पास क़ैद रहे उन में से एक का बयान है “ खुदा मुसलमानों पर रहम करे वो अपने घर वालों से भी अच्छा हम को खिलाते थे और अपने खानदान से पहले हमारी फ़िक्र करते थे |
आम तौर पर जब कैदी क़ैद होकर आते तो नबी स.अ. सब से पहले उनके लिबास की फ़िक्र किया करते थे \
Subhanallah
Jazakillahu khaira for the most valuable aqhlaq of our beloved prophet Muhammad Sallallahu alaihi wa Sallam
May Allah bless us to follow his beautiful sunnah
In sha Allah
Inshallah