Allah Ke 3 Bade Inaam
अल्लाह तआला के तीन बड़े इनआम
यक़ीनन हम हों या आप, सभी चाहते हैं कि हमारी ज़िन्दगी और आख़िरत सब हमारे लिए बेहतर बन जाये और अल्लाह के इनामों की बारिश हम पर होती रहे, और इसके लिए हम इबादत भी करते हैं, दुआ भी करते हैं और फिर दुनियावी कामों में लग जाते हैं
लेकिन ज़रा गौर करें ! क्या यही तरीक़ा है अपनी दुनिया व आख़िरत को बेहतर बनाने का, जिस में सिर्फ हम मशीनी तरीक़े से नमाज़ पढ़ लें, और ऐसी दुआ करें जिस में आपका दिल और आपके जज़्बात न शामिल हों, क्या ऐसे ही अल्लाह को खुश कर पाएंगे, यक़ीनन नहीं
तो अब सवाल उठता है कि हम क्या करें जिस से हमारी दुनिया व आख़िरत दोनों बेहतर बनती है और अगर हम वो न करें तो ये दोनों जहाँ हमारे हाथ से निकल जाएँ, तो ये जान लीजिये कि हदीस शरीफ़ में दो चीज़ें ऐसी हैं जो ये तय करती हैं कि आपकी दुनिया व आख़िरत दोनों जन्नत हैं या दोनों जहन्नम
यहाँ पर दो बातें उनके फ़ायदे और नुक़सान के साथ हम ज़िक्र करने जा रहे हैं, आप ख़ुद तय करें हमें कौन सी बात लेनी है और कौन सी हमेशा के लिए छोड़ देनी है ताकि हम दोनों जहाँ में कामयाब हों
1.जिस के दिल में आख़िरत कि फ़िक्र और गम आ जाये
यानि जिसे इस बात की फ़िक्र लग जाये कि मुझे अल्लाह के यहाँ जवाब देना है और जब तक चार सवालों के जवाब नहीं दे दूंगा तब तक अपने क़दमों को हरकत भी न दे पाऊँगा
वो चार सवाल कौन से हैं
- कहाँ से कमाया
- कहाँ ख़र्च किया
- जवानी कहाँ गवांई
- अपने इल्म पर कितना अमल किया ( यानि तुम भी तो कुछ जानते थे, तो जितना जानते थे उस पर कितना अमल किया )
जो इन चीज़ों को सामने रखते हुए ज़िन्दगी गुज़ारेगा, अल्लाह तआला उसको तीन इनआम अता करते हैं
3 इनआम
- उसकी तमाम ज़रूरतें पूरी कर देते हैं और उस के कामों को तरतीब दे देते हैं ( यानि एक के बाद उसके काम बनते चले जाते हैं
- उसके दिल को गनी बना देते हैं
- और दुनिया उसके कदमों में इस तरह आती हैं जैसे सवारी को नकेल डाल कर गुलाम अपने मालिक के सामने पेश करता है
2. और जिसकी ( ज़िन्दगी का दारोमदार और ) फ़िक्र सिर्फ दुनिया हो
जो सिर्फ उठते बैठते सोते जागते सिर्फ दुनिया के बारे में सोचे कि मेरा क्या बनेगा, ये सब कैसे होगा, और इन्ही सोचों में गुम होकर वो आख़िरत के बारे में भूल गया उसको तीन सजाएं मिलती हैं
3 सजाएं
- उसकी ज़रूरतें कभी पूरी नहीं पड़ती और कोई काम तरतीब से नहीं होता
जैसा कि ऊपर आपने पढ़ा कि जिसकी फ़िक्र आख़िरत हो उसका हमेशा पूरा पड़ जाता है और जिसकी फ़िक्र दुनिया हो तो वो कितना भी कमा कर रख ले, पूरा नहीं पड़ता और उसके काम में तरह तरह की रुकावटें आती हैं
2.उसकी आँखों के सामने हमेशा फ़क़ीरी नज़र आती है
यानि दिल उसका फकीर ही रहता है कुछ भी पा जाये
3. मिलता उसको वही है जो उसकी किस्मत में लिख दिया गया है
दोस्तों और हमारे साथियों ! ऊपर हदीस के मफहूम से मालूम हुआ कि हमें देखना ये है कि हमारी सोच का दारोमदार दुनिया है या आख़िरत, हम दिन में कितनी बार अपनी मरने के बाद की ज़िन्दगी के बारे सोचते हैं
अगर हमारी सोच का दारोमदार आख़िरत है
तो आप दुनिया में तिजारत को भी इबादत समझ कर करेंगे और तिजारत में झूट, धोका, फ़रेब और जिस से हमारे प्यारे नबी मुहम्मद सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने रोका है है उन चीज़ों से बचेंगे और दुनिया के हर मामलात में अल्लाह की ख़ुशी चाहेंगे, जिस से हमारा दुनिया का भी नफ़ा होगा और आख़िरत का भी
और अगर हमारी सोच का दारोमदार दुनिया है
तो आपकी इबादत भी कई बार तिजारत बन जाती है क्यूंकि कई बार ऐसा होता है लोग नमाज़ पढ़ लेते हैं सिर्फ दिखावे के लिए, तो यहाँ पर आपने नमाज़ लोगों के लिए पढ़ी तो उसका सवाब भी यहीं रह गया
और अगर ऐसा आदमी तिजारत करेगा तो वो हर जाएज़ व नाजायेज़ हथकंडे अपनाएगा जिस से माल आये वो चाहे दूसरों का हक़ मारकर हो या किसी चीज़ पर नाजायेज़ क़ब्ज़ा करके हो |
अल्लाह हम सबको आख़िरत की फ़िक्र करने वाला बना दे
हमारी ज़िन्दगी को आसान बना दे
हमें दुनिया का फ़क़ीर न बना कर आख़िरत का अमीर बना दे