Ek Hazaar Deenar Ki Lakdi | Islamic Kahani
एक हज़ार दीनार की लकड़ी
हदीस की सब से बड़ी किताब बुख़ारी शरीफ़ में इस वाक़िये को सात जगह पर बयान किया गया है इस से इसकी अहमियत का पता चलता है
हमारे प्यारे आक़ा पैग़म्बर और नबी मुहम्मद (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपने सहाबा से बनी इसराइल के एक शख्स के इस वाक़िये को बयान फ़रमाया है
वो वाक़िया ये है…
बनी इस्राईल में से एक शख्स को एक हज़ार दीनार की ज़रुरत थी तो उसने समन्दर पार दुसरे किनारे पर एक मालदार आदमी के पास पहुंचा और एक हज़ार दीनार क़र्ज़ माँगा तो…
मालदार आदमी ने कहा : मैं आपको पैसा तो दे दूंगा लेकिन गवाह कौन है गवाह तो लेकर आओ
उस शख्स ने कहा : मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह गवाह है, यही काफ़ी है
मालदार आदमी ने कहा : अच्छा ठीक है, लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा, कोई ज़िम्मेदार तो लेकर आओ ताकि अगर तुम ये पैसे वापस न करो तो मैं उस से वसूल करू
उस शख्स ने फिर कहा : मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह ज़िम्मेदार है, यही काफ़ी है और वही इसकी ज़िम्मेदारी लेगा
मालदार आदमी ने कहा : बात तो आप ठीक कह रहे हैं, आख़िरकार वक़्त तय कर लेने के बाद उस मालदार आदमी ने हज़ार दीनार दे दिए, और कहा कि वक़्त पर ये पैसे वापस कर देना तो उस शख्स ने कहा कि ठीक है, और फिर ये शख्स समंदर पार करके अपने घर चला गया और जिस ज़रुरत के लिए क़र्ज़ लिया था उस ज़रुरत को पूरा किया |
जब क़र्ज़ अदा करने का वक़्त आया तो ये शख्स मालदार आदमी के पास उसके पैसे वापस करने के लिए रवाना हो गया, समंदर के पास पहुँच कर कश्तियाँ ( नाव ) तलाश करने लगा लेकिन कोई कश्ती नहीं मिली, काफी तलाश के बाद जब उसे कोई कश्ती न मिली तो उसे बड़ी फ़िक्र हुई कि कहीं क़र्ज़ अदा करने से पहले मेरी मौत न आ जाये, वो समन्दर के किनारे मारा मारा फिरने लगा लेकिन कोई सवारी नहीं मिली |
आख़िरकार मजबूर होकर एक लकड़ी में सुराख किया और उस सुराख में एक हज़ार दीनार और एक पर्ची रख दी जिसमें उस ने लिखा था कि
“ए समंदर मेरा क़र्ज़ा अदा करने में तू ही रुकावट बन रहा है इसलिए मैं अपना क़र्ज़ा तेरे हवाले करता हूँ अब तू ही ज़िम्मेदार है” फिर उस ने लकड़ी का सुराख बंद करके उसको समंदर में बहा दिया और अल्लाह से दुआ की
“ए अल्लाह मेरा क़र्ज़ा अदा करने में यही समंदर रुकावट बन रहा है मैं तुझे गवाह बनता हूँ और तु ही गवाह और तु ही कफील है”
जब क़र्ज़ अदा करने का वक़्त आया तो वो मालदार आदमी भी समंदर के उस किनारे पर आया तो उसे भी कोई सवारी नहीं मिली, लेकिन देखता क्या है कि एक लकड़ी समन्दर में बहती हुई चली आ रही है, जब वो लकड़ी किनारे पर आ गयी तो उसने इस नियत से उसको उठा लिया कि किसी काम आ जाएगी लेकिन जब घर ले जाकर चीरा तो उसको हज़ार दीनार और वो पर्ची मिली, मालदार आदमी उस पर्ची को पढ़ कर हैरत में पड़ गया |
लेकिन क़र्ज़ लेने वाले शख्स ने एक हज़ार दीनार का इंतज़ाम और किया फिर उसे उस मालदार आदमी से मुलाक़ात का मौक़ा मिल गया तो उसने उसको वो पैसे देने चाहे लेकिन मालदार आदमी ने कहा : तुम्हारे पैसे और पर्ची मुझे मिल चुकी है
और इस वाक़िये से दोनों लोगों के दरमियान ईमान की एक नयी चिंगारी रौशन हुई, इस से एक सबक़ मिलता है कि जो अल्लाह का होता तो अल्लाह तआला समंदर और दरख्तों को भी उसके हुक्मों पर चला देता है और अल्लाह ऐसे लोगों से हक़ीकी तौर पर मुहब्बत रखता है
बुखारी शरीफ़ में ये वाकिया बहुत तफसील से है लेकिन यहाँ पर हम ने शोर्ट में बयां किया है