Aurat Masjid Men | क्या औरत का मस्जिद जाना ज़रूरी है
फ़र्ज़ नमाज़ जमात के साथ मुसलमानों पर फ़र्ज़ है और उस वक़्त ,में घर पर या कहीं और नमाज़ पढ़ना जहां जमात के साथ अदा न की जा रही हो जाएज़ नहीं लेकिन औरतों के लिए ये पाबन्दी नहीं है उन के मसाइल नीचे बयान किये जा रहे हैं
क्या औरतों को जमात के साथ नमाज़ अदा करना ज़रूरी है
मर्दों को जमात के साथ नमाज़ अदा करना ज़रूरी है लेकिन औरतों के लिए ये पाबन्दी नहीं है बल्कि उन के लिए बेहतर बात यही है कि तनहा अपने घरों में नमाज़ पढ़ लें
क्या औरत जमात के लिए मस्जिद जा सकती है
लेकिन अगर औरतें मस्जिद में नमाज़ के लिए आ जाएँ तो शरीअत का क्या हुक्म होगा इस सिलसिले में नबी स. अ. से एक रिवायत जिसको इमाम अबू दाऊद ने ज़िक्र किया है कि रसूल सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
औरत कि नमाज़ जो घर में अदा कि जाये वो अफ़ज़ल है उस नमाज़ से जो घर के सहन ( आँगन ) में पढ़ी गयी हो और घर के कोने में पढ़ी गयी नमाज़ बेहतर है घर के सहन में पढ़ने से
इसी तरह हज़रात आयेशा र.अ. की एक रिवायत है कि
रसूल सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम अगर अगर औरतों के इन मौजूदा हालात को देखते तो उनको मस्जिद में आने से ज़रूर मना फरमा देते जैसा कि बनी इस्राइल कि औरतें मस्जिद में आने से रोक दी गयी थीं
इस में कोई शक नहीं कि रसूल सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में आपकी बीवियां और सहाबा की औरतें नमाज़ पढ़ने मस्जिद में आती थीं मगर ये दौर खैर और भलाइयों का था इसलिए मसाइल पैदा नहीं हुए लेकिन जैसे जैसे ज़माना गुज़रता रहा फ़ितने का अंदेशा बढ़ता रहा और जैसे आज के हालात हैं अगर औरत हर नमाज़ के लिए घर से बाहर निकलेगी तो बिगाड़ पैदा हो सकता है इसलिए उलमा ने औरतों को मस्जिद जाने की इजाज़त नहीं दी है उन के लिए जमात में शरीक होना मकरूह और नापसंदीदा है