Islami Marriage | Islami Shadi
एक अजीबो गरीब शादी
हज़रत सईद इब्ने मुसय्यिब एक ताबई थे, ( जिन्होंने सहाबा को देखा उन्हें ताबई कहते हैं ) कई सहाबा से उन्होंने इल्म हासिल किया | अपने वक़्त के एक बहुत बड़े आलिम कहलाये, उनके पास एक नौजवान आया करता था लेकिन काफ़ी वक़्त गुज़र गया वो नहीं आया, फिर एक दिन वो आया तो हज़रत सईद इब्ने मुसाय्यिब ने न आने की वजह पूछी तो नौजवान ने कहा : मेरी बीवी का इन्तेक़ाल हो गया था इसलिए मैं हाज़िर नहीं हो सका, तो सईद इब्ने मुसय्यिब ने उस नौजवान को दिलासा दिया, फिर दूसरी शादी के बारे में सवाल किया तो उस नौजवान ने अपनी गरीबी का तजकरा किया |
तो हज़रत सईद इब्ने मुसाय्यिब ने उस को अपना दामाद बनाने की खुशखबरी दी, उस नौजवान को यक़ीन नहीं आ रहा था कि हज़रत अपनी उस बेटी के रिश्ते की बात कर रहे हैं जो कुरान की हफिज़ा है और इल्म की दौलत से मालामाल है और जिसके लिए खलीफा ने अपने बेटे के लिए रिश्ता भिजवाया था लेकिन हज़रत सईद ने इनकार कर दिया था इसीलिए उस नौजवान को बहुत हैरत हो रही थी |
हज़रत सईद ने कुछ देर बाद कुछ दिरहम के बदले अपनी बेटी का निकाह उस नौजवान से पढ़ा दिया, ये नौजवान बहुत खुश खुश अपने घर गया, उस दिन उस का रोज़ा था उस ने घर में इफ्तारी का इंतज़ाम किया मगरिब का वक़्त हुआ, रोज़ा इफ़्तार के बाद वो खाना खाने में मसरूफ था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई उस ने दरवाज़ा खोला तो देखा सामने हज़रत सईद खड़े हुए हैं |
और हज़रत सईद हमेशा इल्म के समंदर में डूबे रहते थे, उन्हें बाहर बहुत कम लोगों ने देखा था, इसलिए नौजवान बहुत शर्मिंदा हुआ, उसने कहा : हज़रत आप ने क्यूँ ज़हमत फरमाई, आप बुला लेते मैं आ जाता तो हज़रत सईद ने कहा : मैं तुम्हारी अमानत खुद तुम्हारे सुपुर्द करने आया हूँ उनकी बेटी उनके पीछे खड़ी थी उन्होंने उसको दरवाज़े के अन्दर किया और खुद वहां से अपने घर की तरफ तशरीफ़ ले चले |
ये थीं उस वक़्त की शादियाँ जो बहुत ही आसान होती थीं, महर की रक़म इतनी रखी जाती थी जिसको आसानी से दिया जा सके, सिर्फ मालो दौलत और ख़ूबसूरती पर ही रिश्ता नहीं होता था बल्कि असल बुनियाद उसकी दीन हुवा करती थी, हज़रत सईद ने मालो दौलत ख़ूबसूरती नहीं बल्कि दीनदार नौजवान देख कर अपनी बेटी का रिश्ता कर दिया |
ये थी अस्ल इस्लामी शादी जिसकी बुनियाद हमारे नबी स.अ. डाल कर गए थे लेकिन जैसे जैसे वक़्त गुज़रता रहा, शादियों में सादगी ख़त्म हो गयी और दिखावा बढ़ने लगा, और एक आसान काम मुश्किल हो गया, क़यामत के करीब होने की अलामत ये भी बताई गयी है कि शादी मुश्किल हो जाएगी और बदकारी आसान हो जाएगी, आज अगर अपने आस पास नज़र डालिए तो बिलकुल यही हालात हैं |
आज शादियों में दिखावे के तौर पर लाखों रूपए खर्च कर दिए जाते हैं, लेकिन ज़रा सोचें ! इस में कितने घर आबाद किये जा सकते थे और कितनी शादियाँ की जा सकती थी, कितने गरीब बाप ऐसे हैं जो रात को ठीक से सो भी नहीं पाते कि मैं कहां से इतने जहेज़ का इंतज़ाम करूं और इसी जहेज़ की वजह से कहीं बेटियां जलाई जाती हैं और नहीं तो घर घर सताई जाती हैं |
जबकि इस्लामी तरीके के मुताबिक़ तो बेटी वाला बिलकुल आसानी से अपनी बेटी को ब्याह देता उसे न तो उसके वलीमे की कोई फ़िक्र होती और न ही कोई जहेज़ की टेंशन होती, वो अपनी बेटी को ज़हमत न समझता बल्कि अल्लाह की रहमत समझता ये सिर्फ हमारे रीति रिवाज की वजह से हुआ |
आइये ! शादियों में सादगी को अपनाएं और दिखावे को खत्म कर दें, जो रकम बचे उससे किसी गरीब की बेटी के लिए इंतज़ाम कर दें और यही आप को दुनिया और आख़िरत में काम आने वाला है, शादी में किया गया दिखावा नहीं |
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