Kin Cheezon Se Roza Makrooh Hota Hai
किन चीज़ों से रोज़ा मकरूह हो जाता है ?
आप ने इस से पहले रमज़ान कटेगरी में पढ़ा कि रमज़ान का रोज़ा किन चीज़ों से टूट जाता है और किन चीज़ों से नहीं टूट्ता लेकिन अब आप ये भी जान लीजिये कि रमज़ान का रोज़ा किन चीज़ों से मकरूह होता है क्यूंकि रोज़ा रखने वाले को इन सारी बातों से पूरी तरह ख़बरदार होना चाहिए ताकि उसके रोज़े पर किसी तरह का कोई असर न पड़े |
मकरूह का मतलब
रोज़े में मकरूह का मतलब : वो चीज़ें जो रोज़े में नापसंदीदा हैं और वो चीज़ें हैं जिनसे रोज़ा टूटने का अंदेशा होता है
रोज़े को मकरूह कर देने वाली चीज़ें ये हैं
टूथपेस्ट मंजन वगैरह से दांत साफ़ करना
किसी मंजन या टूथ पेस्ट इस्तेमाल करना जबकि उसका कोई हिस्सा हलक में न जाये तो ये मकरूह है लेकिन हलक में चला गया तो रोज़ा टूट जायेगा |
बिला ज़रुरत किसी चीज़ को चबाना या चख कर थूकना
किसी चीज़ को परखने या जांचने के लिए कोई चीज़ चखना या चबाने से रोज़ा मकरूह हो जाता है लेकिन अगर कोई उज्र हो तो मकरूह नहीं है जैसे किसी औरत का शौहर बदमिज़ाज है और वो उसके डर से खाना पकाते हुए खाने में नमक वगैरा चख ले तो ये मकरूह नहीं है |
गीबत करना
किसी की पीठ पीछे बुराई करना ये गीबत में आता है और गीबत उसे कहते हैं कि किसी के पीठ पीछे उसके बारे में ऐसी बात की जाये कि अगर वो वहां होता तो बुरा मान जाता तो ऐसा अमल रोज़े को मकरूह कर देता है |
लड़ना झगड़ना, गाली गलौच करना
रोज़ेदार के लिए ज़रूरी है कि वो अपनी ज़ुबान पर लगाम लगा कर रख्रे अगर कोई झगड़ना भी चाहे तो उससे कह दे मैं रोज़े से हूँ
खून देना
रोज़े की हालत में खून देना मकरूह है जबकि इस बात का अंदेशा हो कि इस से कमज़ोरी हो सकती है और रोज़ा तोड़ने की नौबत आ सकती है
अपने मुंह में थूक जमा करके निगलना
मुंह में थूक जमा करके निगलना मकरूह है वो अलग बात है कि इससे रोज़ा नहीं टूट्ता
बीवी से दिल लगी करना
रोज़े की हालत में बीवी से दिल लगी करना जबकि इस बात का अंदेशा हो कि दिल लगी करते करते बात हमबिस्तरी तक पहुँच जाएगी तो ये दिल लगी भी मकरूह है |
कमज़ोर करने वाले काम करना
रोज़े की हालत में ऐसे काम करना कि जिसकी वजह से इतनी कमजोरी आ जाये कि रोज़ा तोड़ना पड़ जाये तो ऐसा करना मकरूह है |
गुनाह के काम करना
रोज़े की हालत में गुनाह के काम करने से रोज़ा टूटता तो नहीं है लेकिन मकरूह ज़रूर हो जाता है
सहरी में ज़्यादा ताखीर करना
सहरी में ताखीर करना मुस्तहब है यानि कुछ लोग ऐसे हैं जो सोने से पहले ही सहरी कर लेते हैं तो इतनी ये ना मुनासिब है ऐसा नहीं करना चाहिए बल्कि ताखीर या देर करके सहरी करना चाहिए लेकिन इतनी भी देर न हो सहरी का वक़्त भी खतरे में पड़ जाये तो ये ज़्यादा देर करना मकरूह है |
औरत का शौहर की इजाज़त के बगैर नफ्ली रोज़ा रखना
यहाँ पर रमज़ान के फ़र्ज़ रोजों की बात नहीं हो रही है बल्कि नफ्ल रोजों की बात हो रही है जो रमजान के अलावा है और जिनको अगर एक औरत अपने शौहर की इजाज़त के बगैर रखे तो ये मकरूह है लेकिन अगर शौहर ख़ुद रोज़े से है, एहराम की हालत में है या बीमार है तो मकरूह नहीं है |