Maut Ka Waqt | इस्लाम के मुताबिक़ मरने वाले के पास क्या करना चाहिए

maut ka waqt

Maut Ka Waqt

इस्लाम के मुताबिक़ मरने वाले के पास क्या करना चाहिए

وَجَاءَتْ سَكْرَةُ الْمَوْتِ بِالْحَقِّ 

व जाअत सकरतुल मौत

ये आयत 26 वें पारे में है जिसका मतलब है और मौत की बेहोशी ठीक ठीक आ पहुची

इस आयत में एक लफ्ज़ है “सकरातुल मौत” इस का मतलब क्या है

सकरातुल मौत यानि “मौत की बेहोशी” और ये रूह निकलने से पहले की वो हालत है जिस में इन्सान पर एक नशा सा छा जाता है और एक बेहोशी सी तारी हो जाती है, ये रूह के जिस्म से निकलने का वक़्त होता है और इस में इन्सान को सख्त तकलीफ होती है |

सकरात की पहचान

इस वक़्त की पहचान ये है कि इंसान के जिस्म की तमाम रगें खिंचने लगती है, रंग बदल कर मटियाला हो जाता है, नाक टेढ़ी हो जाती है, आँख के ढीले ऊपर चढ़ने लगते हैं, हलक और सीने से घरघराहट की आवाज़ सुनाई देने लगती है, होंट खुश्क, हाथ पाव सर्द और बेहिस होने लगते हैं | ठीक यही या इस से मिलते जुलते आसार जब दिखाई देने लगें तो समझ लीजिये ये वक़्त “सकराते मौत” का है

(अल्लाह तआला सब पर आसान फरमाए)

ऐसे हाल में क्या करना चाहिए

जब आप किसी मुसलमान को इन आखिरी वक़्त में पायें तो मुस्तहब ये है कि मरने वाले को सीधी करवट इस तरह लिटा दीजिये कि उस का मुंह किबले की तरफ़ रहे (यही सुन्नत है) लेकिन अगर जगह की तंगी या किसी और वजह से ये न कर सके तो जिस हाल में हो उसी हाल में ही रहने दीजिये |

सब से अहम् काम

फिर उस वक़्त करने का सब से अहम् काम ये है कि मरने वाले को कलमे की तलकीन कीजिये और तलकीन का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि मरने वाले से आप कहे कि “तुम पढो” बल्कि इस का मतलब ये है कि उस के कान के क़रीब ख़ुद कलिमा शहादत बार बार हलकी आवाज़ में दोहराते रहिये

अश हदू अल्ला इलाहा इल्लल लाहू व अश हदू अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुह

कलिमा कब तक पढ़ें ?

और ये तब तक करते रहिये जब तक मरने वाला अपनी ज़ुबान से कलिमा पढ़ दे या इशारे से पढने की तसदीक़ कर दे फिर आप कलिमा पढना बंद कर सकते हैं लेकिन अगर इस के बाद मरने वाले ने दुनिया की कोई बात की या उस की ज़ुबान से निकल गयी तो फिर दोबारा कलिमे की तलकीन कीजिए क्यूंकि मकसद ये है कि मरने वाले की आख़िरी बात “ला इलाहा इल्लल लाह” ही होनी चाहिए

जब इन्तेक़ाल हो जाये तो…

फिर जैसे ही जिस्म से रूह निकल जाये और जिस्म एक बेजान लाश बन जाये तो आँखें अगर खुली रह गयी हैं तो धीरे से बंद कर दीजिये
फिर कपड़े की एक पट्टी उस की ठोड़ी से नीचे से लेकर उस के सर पर बाँध दीजिये ताकि मुंह खुला न रह जाये और मय्यत को चारपाई या तख्त पर ही रहने दीजिये और इस के पास अतर छिड़क दीजिये या लोबान जला कर खुशबू से महका दीजिये |

क्या नापाक लोग मय्यत के पास जा सकते हैं ?

मय्यत के पास नापाकी की हालत में न मर्द आने पाए न औरत हाँ हैज़ व निफ़ास ( माहवारी ) वाली औरतों के करीब बैठ जाने में कोई हर्ज नहीं है |

 

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