Maut Ke Baad Insan Ke 9 Pachtave | मौत के बाद इंसान के 9 पछतावे

Maut Ke Baad Insan Ke 9 Pachtave

Maut Ke Baad Insan Ke 9 Pachtave |

मौत के बाद इंसान के 9 पछतावे

इस दुनिया में पैदा हो जाने के बाद, और अल्लाह की दी हुई इतनी सारी नेअमतों से फ़ायदा उठा लेने के बाद, मरने के बाद नेक लोगों को जन्नत और बुरों को दोज़ख़ मिलेगी, हर किसी का हिसाब किताब ज़रूर होगा, ये सब जान लेने के बाद अगर कोई बुराइयों पर, नाफ़रमानी पर, बेहयाई पर, शिर्क और कुफ़्र पर, अड़ा और जमा रहता है और अपनी आख़िरत के लिए कुछ नहीं करता कोई तय्यारी नहीं करता (Maut Ke Baad Insan Ke 9 Pachtave | मौत के बाद इंसान के 9 पछतावे)

तो जब मौत उसके पास आएगी और उसका हिसाब किताब शुरू होगा, तो अब उसके अन्दर का मरा हुआ अहसास ज़िन्दा होगा फिर वो अपनी पिछली ज़िन्दगी पर अफ़सोस करेगा और कहेगा कि काश एक बार फिर से दुनिया वापस भेज दिया जाये, लेकिन अब वक़्त गुज़र गया अब न तो तमन्नाये कुछ काम आयेंगी, न हसरतों से कुछ बात बनेगी, और न ही अफ़सोस करने का कोई फ़ायदा होगा |

आख़िरत का मन्ज़र देख लेने के बाद ये लोग 9 तरह की तमन्नाएँ करेंगे जिनको कुरआन करीम ने जगह जगह ज़िक्र किया है ताकि लोग ये जान लें कि मौत के बाद इंसान के लिए अपने किये हुए आमाल की तलाफ़ी मुमकिन नहीं है, इसलिए जब तक ज़िन्दगी है अपनी इस्लाह कर लें सुधर कर लें |

पहली तमन्ना

1. يَا لَيْتَنِي كُنْتُ تُرَابًا (सूरत अल-नबा 40)

तरजुमा: “ऐ काश! मैं मिट्टी होता।”

वज़ाहत: क़यामत के दिन अपनी हटधर्मी का नतीजा देख लेने के बाद काफिरों की शदीद तरीन हसरत और तमन्ना यह होगी कि काश हम इंसान ही न होते और मिट्टी हो जाते ताकि हमें ये आख़िरत की सज़ा का सामना न करना पड़ता और अज़ाब न झेलना पड़ता।

दूसरी तमन्ना

2. يَا لَيْتَنِي قَدَّمْتُ لِحَيَاتِي (सूरत अल-फज्र 24)

तरजुमा: “ऐ काश! मैंने अपनी (आख़िरत की) ज़िन्दगी के लिए कुछ किया होता।”

वज़ाहत: यानि आख़िरत में जब इंसान को अपनी ग़फ़लत, बेहिसी और बद अमली का अंदाज़ा होगा, तब वह अपनी हक़ीक़ी ज़िन्दगी यानी आख़िरत के लिए तैयारी न करने पर बहुत अफ़सोस करेगा। इससे यह सबक मिलता है कि दुनियावी ज़िन्दगी आरिज़ी है और ख़त्म हो जाने वाली है इसलिए हमें अपनी हक़ीक़ी मंज़िल यानी आख़िरत के लिए तैयार रहना चाहिए।

तीसरी तमन्ना

3. يَا لَيْتَنِي لَمْ أُوتَ كِتَابِيَهْ (सूरत अल-हाक़्क़ा 25)

तरजुमा: “ऐ काश! मुझे मेरा नाम-ए-अमाल न दिया जाता।”

वज़ाहत: क़यामत के दिन जब इंसान को उसका आमाल नामा दिया जाएगा, तब वह अपनी बद-अमालियों की वजह से बहुत शर्मिन्दा होगा और ये तमन्ना करेगा कि काश मेरी ये सारी ज़िन्दगी की करतूतों का रजिस्टर मेरे सामने न आता जिसकी वजह से इतनी शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है |

चौथी तमन्ना

4. يَا وَيْلَتَىٰ لَيْتَنِي لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًا (सूरत अल-फुरक़ान 28)

तरजुमा: “ऐ काश! मैंने फलां को दोस्त न बनाया होता।”

वज़ाहत: वह लोग जो बुरे दोस्तों के साथ रहने की वजह से सही रास्ते से भटक जाते हैं गुमराह हो जाते हैं, और ग़लत कामों के शिकार हो जाते हैं वो आख़िरत में इस बात पर अफ़सोस करेंगे कि दुनिया में उन्होंने ऐसे लोगों से क्यूँ दोस्त बनाया, जो उन्हें गुमराही की तरफ़ ले गए और अल्लाह को नाराज़ कर दिया और ये शर्मिंदगी उन्हें इतनी शदीद होगी कि वो कह उठेंगे कि काश, मैंने फलां को दोस्त ही न बनाया होता तो आज मुझे ये दिन न देखना पड़ता ।

ये आयत हमें ख़बरदार करती है कि दोस्तों का इन्तेखाब बहुत सोच समझ कर करना चाहिए अच्छे दोस्त इन्सान को नेकी और भलाई की ले जाते हैं और बुरे दोस्त उसको नुक़सान की तरफ़ ले जाते हैं और गुमराही के गढ़े में धकेल देते हैं

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास र.अ. से रिवायत है कि नबी करीम स.अ. से पुछा गया कि कौन सा दोस्त बेहतर है तो आप स.अ. ने अच्छे दोस्त की तीन अलामतें और पहचान बताई, (1)पहली पहचान जिस के देखने से तुमको अल्लाह याद आये (1) दूसरी पहचान जिस के बोलने से तुम्हारे इल्म में इज़ाफ़ा हो (3) और तीसरी पहचान जिसके अमल से आख़िरत की याद ताज़ा हो

पांचवी तमन्ना

5. يَا لَيْتَنَا أَطَعْنَا اللَّهَ وَأَطَعْنَا الرَّسُولَا (सूरत अल-अहज़ाब 66)

तरजुमा: “ऐ काश! हम ने अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमांबरदारी की होती।”

वज़ाहत: क़यामत के दिन जब काफिर और फ़ासिक़ लोग जहन्नम की तरफ़ घसीट कर लाये जायेंगे तब अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी का अहसास होगा और ये तमन्ना करेंगे कि काश उन्होंने अल्लाह उसके रसूल की तालीमात पर कान धरे होते तो इस ज़िल्लत व रुसवाई से बच जाते |

छठी तमन्ना

6. يَا لَيْتَنِي اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُولِ سَبِيلًا (सूरत अल-फुरक़ान 27)

तरजुमा:”ऐ काश! मैंने रसूल का रास्ता इख्तियार किया होता।”

वज़ाहत: आख़िरत में वह लोग जिन्होंने शैतान का रास्ता इख्तियार किया और अल्लाह के नबी के रास्ते को कोई अहमियत नहीं दी, तो आख़िरत का वो खौफ़नाक मन्ज़र देख कर वो ये कहने पर मजबूर हो जायेंगे कि काश शैतानी रास्तों पर न चल कर अम्बिया और रसूल के रास्ते को अपनी मन्जिल बनाते तो आज मन्ज़र कुछ और होता |

सातवीं तमन्ना

7. يَا لَيْتَنِي كُنتُ مَعَهُمْ فَأَفُوزَ فَوْزًا عَظِيمًا (सूरत अन-निसा 73)

तरजुमा:”ऐ काश! मैं भी उनके साथ होता तो बड़ी कामयाबी हासिल कर लेता।”

वज़ाहत: जो लोग अल्लाह के रास्ते में कुर्बानी दे रहे हैं, हराम से बच कर हलाल को इख्तियार कर रहे हैं, अपने हर काम में अल्लाह की रज़ामंदी और ख़ुशी को अव्वल रखते हैं, यक़ीनन वो लोग क़ब्र व हश्र के इम्तिहान में कामयाब होंगे और पुलसिरात पर बिजली की तरह गुज़र जायेंगे और फिर जन्नत में उनका इस्तेकबाल किया जायेगा जहाँ पर हसींन और ख़ूबसूरत मनाज़िर उनका इन्तिज़ार कर रहे होंगे
जन्नतियों की ये अज़ीम कामयाबी देख कर पीछे रहने वाले हमेशा अफ़सोस करेंगे कि काश हम भी इन का साथ पकड़ लेते तो कामयाबी हमारा भी मुक़द्दर बन जाती और अल्लाह की महमान नवाजी हम भी देखते

आठवीं तमन्ना

8. يَا لَيْتَنِي لَمْ أُشْرِكْ بِرَبِّي أَحَدًا (सूरत अल-कहफ़ 42)

तरजुमा: “ऐ काश! मैंने अपने रब के साथ किसी को शरीक न ठहराया होता।”

वज़ाहत: शिर्क करने वालों को आख़िरत में शदीद हसरत और इन्तिहाई अफ़सोस होगा कि क्यूँ उन्होंने अल्लाह के साथ दूसरों को शरीक ठहराया। क्यूँ मुझे ये बात समझ नहीं आई कि इस दुनिया को बनाने में और उसको चलाने में अल्लाह का कोई पार्टनर नहीं है, उसका कोई शरीके सफ़र नहीं है, वो अकेला ही सारी कायनात का मालिक है इसलिए बंदगी उसी को जेब देती है और दुआ के लिए हाथ सिर्फ़ उसी के सामने उठाये जाते हैं

इससे ये बात पता चलती है कि तौहीद की हक़ीक़त को समझना और शिर्क से बचना कितना ज़रूरी है।

नवीं तमन्ना

9. يَا لَيْتَنَا نُرَدُّ وَلَا نُكَذِّبَ بِآيَاتِ رَبِّنَا وَنَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ (सूरत अल-अनआम 27)

तरजुमा :”ऐ काश! कोई सूरत ऐसी हो कि हम दुनिया में फिर वापस भेजे जाएं और अपने रब की निशानियों को न झुटलाएं और ईमान लाने वालों में शामिल हों।”

वज़ाहत: आख़िरत में काफिर और गुमराह लोग दुनिया में दुबारा जाने की तमन्ना करेंगे ताकि वह अल्लाह के कलाम पर और रसूलों पर ईमान ला कर उस पर अमल कर सकें, और अपने गुनाहों की माफ़ी मांग सकें लेकिन अब तौबा का दरवाज़ा बंद हो चुका अब उनकी ये तमन्ना कोई फायदा न देगी।

यह आयत इस बात से आगाह कर रही है कि सिर्फ़ दुनियावी ज़िन्दगी ही मौका है ईमान लाने का और अपने गुनाहों से तौबा करने का आँखें बंद हो जाने के बाद ये मौक़ा हाथ से निकल जायेगा ।

यह तमाम आरज़ुएं और तमन्नाएँ सिर्फ़ यही बता रही हैं कि मौत के बाद इंसान के पास अपने आमाल को सुधारने का कोई मौका नहीं मिलेगा, लिहाज़ा जब तक ज़िन्दगी है हमारी आँखें खुली हुई हैं हमें अपनी इस्लाह करनी चाहिए |

अल्लाह तआला हमें नेको कारों में शामिल फरमा दे और आख़िरत में अफ़सोस करने से बचा ले

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