Nabi Ki Baaten | 7 तबाह करने वाले गुनाह जो हमारे नबी मुहम्मद स.अ. ने बताये
मुहम्मद पैगंबर तमाम इंसानों के लिए एक नेमत हैं , क्योंकि आपकी पूरी ज़िन्दगी सभी मुस्लिमों के लिए एक अहसान है, एक तरफ जहाँ नबी स.अ. ने जन्नत की तरफ ले जाने अमाल के बारे हिदायत दी तो दूसरी ओर आपने तबाह करने वाले गुनाह के बारे में भी बताया जो किसी को भी दोज़ख़ की आग में धकेलने के लिए काफी हैं !
अबू हुरैरा राज़ियल लाहू अन्हु रिवायत करते हैं कि मुहम्मद स.अ. ने फ़रमाया : “इन सात तबाह्कुन गुनाहों से बचो।…
1. अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत करना
इस्लामिक टीचिंग और तालीम का आधार और बुनियाद ही यही है कि “अल्लाह एक है और मुहम्मद पैगंबर स.अ. उनके आख़िरी रसूल है”। इसलिए अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत करना, किसी को भी खुदा मानना और उस पर यक़ीन करना, एक कबीरा गुनाह है!
2. जादू सीखना और करना
जादू और ज्योतिष शास्त्र इस्लाम में सख्त मना है, क्योंकि किसी के भविष्य और मुसतकबिल के बारे में फैसला करना अल्लाह के हाथ में है।
3. किसी को क़त्ल करना
” क़त्ल और हत्या ” इस्लामिक तालीम के सख्त खिलाफ है। किसी की ज़िन्दगी को नाहक़ ख़त्म करना, चाहे इंसान हो या जानवर बेजा क़त्ल इस्लाम में एक बहुत बड़ा गुनाह है।
4. ब्याज व सूद खाना
इस्लाम में, यह बात मानी जाती है कि ( Interest ) ब्याज अमीर को अमीर और गरीब को और गरीब बनाता है! जो कि एक तरह नाइंसाफी और अन्याय है। इस्लाम, इस तरह के नियम को रद करता है, इसीलिए इस्लाम में ब्याज सख्ती से हराम किया है।
5. यतीम की दौलत खाना
“यतीमों की देखभाल करना” ये सुन्नत सिर्फ मुहम्मद स.अ. की ही नहीं, बल्कि हज़रत अबू बक्र र.अ., हज़रात उस्मान र.अ., अली र.अ., हसन और हुसैन र.अ. ने भी यतीमों की देखभाल करने पर उभारा है | और उम्मत को इस बात से सख्ती से मना किया कि वो यतीम के माल को नाइंसाफ़ी के साथ खाएं ।
6. लड़ाई के दौरान मैदाने जंग छोड़ कर भाग आना
एक मुसलमान कभी किसी से बेवफाई नहीं कर सकता, और दूसरों को खतरे में छोड़ कर अपनी पीठ फेर कर नहीं भाग सकता (जब जंग अल्लाह के रास्ते में हो)
7. किसी पाकबाज़ औरत पर झूठा इलज़ाम लगाना
एक पाकबाज़ औरत पर गलत काम करने का इलज़ाम लगाना, जो उसने कभी नहीं किया, आपके लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकता है, क्योंकि आप न केवल उसे चोट पहुँचा रहे हैं, बल्कि आप उसके चरित्र ( Character ) पर सवाल उठाकर उसकी पूरी ज़िंदगी तबाह कर रहे हैं।
अल्लाह हिफ़ाज़त फ़रमाए ( आमीन )
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