Namaz Ke Wajibat Kitne Hain
नमाज़ के वाजिबात कितने हैं ?
आप जानते ही होंगे कि नमाज़ के अन्दर कुछ चीज़ें सुन्नत हैं कुछ चीज़ें वाजिब तो कुछ चीज़ें फ़र्ज़ हैं जैसे अगर हम कहें कि नमाज़ में फ़र्ज़ क्या है तो आप कहेंगे जैसे रुकू करना सज्दा करना और अगर हम कहें कि वाजिब क्या है तो आप कहेंगे कि जैसे सूरह फ़ातिहा पढ़ना और वित्र में दुआए क़ुनूत पढ़ना वगैरह
तो हम आज आपके लिए नमाज़ के कुछ वाजिबात लेकर आये हैं जिनको समझना बहुत ज़रूरी है क्यूंकि अगर इन में से कोई छूटा तो सज्द-ए-सह्व वाजिब हो जायेगा और अगर आप सज्द-ए-सह्व नहीं करते हैं तो आपकी नमाज़ नहीं होगी इसलिए समझ लें
फ़र्ज़ और वाजिब का फ़र्क
अमल के एतबार से वाजिब और फ़र्ज़ में कोई फ़र्क नहीं है जिस तरह फ़र्ज़ पर अमल ज़रूरी है उसी तरह वाजिब पर अमल ज़रूरी है, इन दोनों का छोड़ने वाला गुनाहगार है लेकिन इन दोनों में एक बुनियादी फ़र्क ये है कि फ़र्ज़ का इनकार करने वाला काफिर क़रार पाता है वाजिब के इनकार करने वाले को काफिर नहीं कहेंगे |
नमाज़ के वाजिबात | Namaz Ke Wajibat
1. सूरह फ़ातिहा पढ़ना
यानि “अलहम्दु शरीफ़” पढ़ना
2. सूरह फ़ातिहा का तकरार न करना
हर रकात में सूरह फ़ातिहा सिर्फ एक बार वाजिब है लेकिन अगर दो बार पढ़ लिया तो सज्द-ए-सह्व वाजिब हो जायेगा ( हाँ ! अगर सूरह फ़ातिहा पढ़ कर कोई और सूरह पढ़ी फिर सूरह फ़ातिहा उसी रकात में पढ़ी तो कोई हरज नहीं क्यूंकि सूरह फ़ातिहा किरत के दरजे में आ गयी इसे तकरार नहीं कहेंगे |
3. कोई सूरत मिलाना
सूरह फ़ातिहा के बाद कोई सूरह या कुछ आयतें पढ़ना
4. क़अद-ए-ऊला में बैठना अत तहिय्यात पढ़ना
दूसरी रकात में अत तहिय्यात पढ़ने के लिए बैठना वाजिब है
5. क़अदए अखीरह में अत तहिय्यात पढ़ना
यानि चार रकात वाली नमाज़ में चौथी रकात और दो रकातों वाली नमाज़ में दूसरी रकात में बैठने को क़अदए अखीरा कहते हैं
6. लफ्ज़े सलाम के ज़रिये नमाज़ को ख़त्म करना
अस “सलामु अलैकुम व रहमतुल लाह” कह कर नमाज़ से निकल आना
7. नमाज़े वित्र में दुआए क़ुनूत पढ़ना
वित्र की नमाज़ में जब तीसरी रकात पढ़ते हैं तो उस रकात में दुआए क़ुनूत पढ़ना वाजिब है
8. फ़र्ज़ की पहली दो रकातों में किरत करना
फ़र्ज़ की पहली दो रकातों में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह मिलाना वाजिब है अगर इन को छोड़ कर तीसरी या चौथी में किरत की तो वाजिब छूटने की वजह से सज्द-ए-सह्व लाजिम हो जायेगा |
9. रुकू और सजदे में इत्मीनान का मुज़ाहरा करना
हर चीज़ को इत्मीनान से यानि अच्छी तरह ठहर कर रुकू और सज्दा करना और पहले सज्दे से उठ कर इत्मीनान से बैठने के बाद फिर दूसरा सज्दा करना
10. सज्दे में पेशानी के साथ नाक ज़मीन पर रखना
अगर कोई उज्र न हो तो पेशानी भी और नाक भी दोनों सजदे में रखी जाएँगी
11. कौमा करना
रुकू के बाद सीधे खड़े होने को कौमा कहते हैं ( जिसमें समिअल लाहु लिमन हमिदह पढ़ा जाता है )
12. जल्सा करना
पहले सज्दे से उठने के बाद दुसरे सज्दे में जाने से पहले सीधे बैठ जाने को जल्सा कहते है और ये वाजिब है
13. जहरी नमाज़ में जहरी सिर्री नमाज़ में सिर्री किरत करना
मगरिब और ईशा की पहली दो रकातों में, और फज्र की दोनों रकातों में, इमाम का बलंद आवाज़ से पढ़ना और जुहर और असर की चारों रकातों में, मगरिब की आख़िरी रकात में और ईशा की आख़िरी दो रकातों में आहिस्ता पढ़ना वाजिब है
• अगर सिर्री नमाज़ों ( ज़ुहर और असर ) में तीन छोटी आयतों या एक लम्बी आयत के बक़द्र ज़ोर से किरत की तो सज्द-ए-सह्व लाज़िम है
• अगर जहरी नमाज़ों में (फज्र, मगरिब, ईशा) भूल कर तीन छोटी आयतों या एक लम्बी आयत के बक़द्र आहिस्ता से किरत की तो सज्द-ए-सह्व लाज़िम है
14. तरतीब
हर फ़र्ज़ को तरतीब से अदा करना यानि पहले खड़े होकर अल्हम्दु पढ़ना फिर सूरह मिलाना फिर रुकू करना उसके बाद सज्दा करना
15. दोनों ईदों की नमाज़ में ज़ायेद तक्बीरें कहना
ईदुल फ़ित्र और ईदुल अदहा की नमाज़ में आम नमाज़ों के अलावा 6 तक्बीरें ज़्यादा कही जाती हैं और उन्हें कहना वाजिब है
ये नमाज़ के वाजिबात हैं अगर इन में से कभी कुछ छूट जाये तो सज्द-ए-सह्व ज़रूर कर करें
Sir मुझे वाजिबात अच्छी तरह समझ नहीं आ रहा है कोई और तरीका है समझा ने का