Qaza Namaz Kaise Ada Kare
क़ज़ा नमाज़ अदा करने का तरीक़ा
नमाज़ ( Namaz ) इस्लाम का अहम् फ़रीज़ा है, और आख़िरत में सब से पहले नमाज़ का ही हिसाब होगा, अगर नमाज़ अच्छी निकल आई तो सारे आमाल भी इंशा अल्लाह सही निकलेंगे और अगर नमाज़ में ही फंस गए तो दुसरे आमाल में भी बच पाना मुश्किल है
हदीस शरीफ़ में है कि नमाज़ अगर खड़े होकर नहीं पढ़ सकते, तो बैठ कर पढ़ो, बैठ कर नहीं पढ़ सकते लेट कर पढ़ो, लेट कर नहीं पढ़ सकते तो इशारों से पढो, बहरहाल अगर आदमी होशो हवास में है तो नमाज़ माफ़ नहीं है | तो चलिए आज सीख लें कि कोई नमाज़ अगर छूट जाये तो कैसे क़ज़ा पढ़ें |
क़ज़ा और अदा नमाज़ में फ़र्क क्या है
अदा : जो नमाज़ वक़्त पर पढ़ी जाये वो अदा है
कज़ा : जो वक़्त निकल जाने पर पढ़ी जाये वो कज़ा है
क़ज़ा नमाज़ की नियत कैसे करें ?
नियत करता हूँ मैं 4 रकात नमाज़ फुलां वक़्त और फुलां दिन वास्ते अल्लाह तआला के रुख मेरा काबे शरीफ़ की तरफ “अल्लाहु अकबर“
क्या सारी रकातों की क़ज़ा करनी है ?
नहीं, आपको सिर्फ फ़र्ज़ और वाजिब ( वित्र की नमाज़ ) रकातों की ही कज़ा करनी होगी सुन्नत और नफ्ल की नहीं
अगर कोई नमाज़ छूट गयी लेकिन अभी वक्त नहीं निकला है तो आप सुन्नत फ़र्ज़ वाजिब सब पढ़ सकते हैं लेकिन वक़्त निकल गया और नमाज़ क़ज़ा हो गयी तो अब सिर्फ फ़र्ज़ ही पढ़ें हाँ, अगर ईशा नमाज़ की क़ज़ा कर रहे हैं तो वाजिब यानि वित्र की भी क़ज़ा करनी होगी |
अगर पूरे दिन की नमाज़ क़ज़ा हो गयी तो कैसे पढ़ें ?
जैसे सन्डे के दिन मेरी पाँचों नमाज़ें क़ज़ा हो गयीं तो अब मुझे
- फ़ज्र की फ़र्ज़ दो रकात,
- ज़ुहर की फ़र्ज़ 4 रकात,
- अस्र की फ़र्ज़ 4 रकात,
- मगरिब की फ़र्ज़ 3 रकात,
- और ईशा की फ़र्ज़ 4 रकातों के साथ 3 वित्र भी मिला कर पढनी है
इस तरह पूरे दिन की नमाज़ में आपको सिर्फ 20 रकात ही क़ज़ा करनी है क्यूंकि पाँचों वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ों को जोड़ें तो 17 हुईं और 3 वित्र जोड़ लें तो 20 हो गयीं बस आपको ये बीस रकात अलग अलग वक़्त के फ़र्ज़ की नियत करके अदा कर लें | यानि जब फ़ज्र पढ़ें तो फ़ज्र की नियत कर लें और ज़ुहर पढ़ें तो ज़ुहर की नियत कर लें |
तमाम नमाज़ों को एक साथ पढ़ सकते हैं ?
ये आपके ऊपर है आप चाहें तो एक के बाद एक सारी नमाज़ें एक साथ पढ़ लें
या एक एक दो दो करके पढ़ें
क़ज़ा नमाज़ों को किस वक़्त अदा करें ?
सिर्फ नीचे दिए गए टाइम्स में क़ज़ा न करें बाक़ी जिस वक़्त आप चाहें क़ज़ा कर सकते हैं
- मकरूह वक्तों में ( सूरज निकलते वक़्त, ज़वाल के वक़्त, सूरज डूबते वक़्त ) कज़ा नमाज़ नहीं पढ़ी जाएगी
क्यूंकि ये मकरूह वक़्त हैं इन वक्तों में कोई नमाज़ नहीं पढ़ी जाती
- अस्र के बाद और फज्र की नमाज़ के बाद
अस्र और फज्र के बाद कोई नफ्ल नमाज़ नहीं है इसलिए देखने वाला यही समझेगा कि इसकी कोई नमाज़ छूटी है जिसे ये पढ़ रहा है जबकि अल्लाह तआला आपके इस नमाज़ छोड़ देने वाले ऐब पर पर्दा डालना चाहता है तो आप इसको लोगों के सामने इसे ज़ाहिर न करें इनके अलावा जिस वक़्त भी क़ज़ा नमाज़ अदा करना चाहें कर सकते हैं |
अल्लाह हम सबको नमाज़ वक़्त पर पढने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए |
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