Qurbani Kis Par Wajib Hai | Eid Ul-Adha | क़ुरबानी किस पर वाजिब है ?

Qurbani Kis Par Wajib Hai

Qurbani Kis Par Wajib Hai | Eid Ul-Adha

क़ुरबानी किस पर वाजिब है ?

आप जानते हैं कि ज़िल हिज्जा का महीना आ गया है, और हज करने वाले हाजी मक्का मुकर्रमा पहुँच चुके हैं, अल्लाह की इबादत का ये मौसमे बहार अपने फूल खिला रहा है और क़ुरबानी के लिए जानवरों की ख़रीदारी के बाज़ार भी सज चुके हैं,

लेकिन ऐसे में एक सवाल जो हमेशा लोगों के ज़हनों में रहता है वो ये है कि क़ुरबानी किन लोगों को करना ज़रूरी होती है और किन लोगों को नहीं, कितना माल हो तो आदमी पर क़ुरबानी वाजिब है और कितना माल हो तो वाजिब नहीं

तो आज हम इसी सवाल को तफसील से समझेंगे कि क़ुरबानी के दिनों में किस के लिए क़ुरबानी न करना गुनाह है और अगर कोई क़ुरबानी न करे तो उसकी पकड़ नहीं होगी

Qurbani Kis Par Wajib Hai ? क़ुरबानी किस पर वाजिब है ?

तो जान लीजिये कि क़ुरबानी वाजिब है उन लोगों पर जिन पर ये शर्तें पूरी हो रही हैं

1. आक़िल हो

यानि अक्लमंद हो पागल या मजनून पर क़ुरबानी नहीं है

2. बालिग़ हो

नाबालिग़ पर क़ुरबानी वाजिब नहीं है

3. मुसलमान हो

काफ़िर पर क़ुरबानी नहीं है

4. मुक़ीम हो

जो मुसाफ़िर हो यानि सफ़र की हालत में हो उस पर क़ुरबानी वाजिब नहीं

5. साहिबे निसाब हो

साहिबे निसाब ( Sahibe Nisab ) किसे कहते हैं ?

शरीअत ने एक लिमिट बता दी है कि अगर इतना माल मौजूद है तो वो शख्स साहिबे निसाब होगा और अगर इतना नहीं है तो वो साहिबे निसाब नहीं है और क़ुरबानी उसे करनी ज़रूरी नहीं है

शरीअत ने माल की लिमिट क्यूँ रखी और सब को साहिबे निसाब क्यूँ नहीं बनाया ?

ये बात ध्यान रखिये कि कोई भी हुक्म लगाने से पहले शरीअत बन्दे की हालत को समझती है वो फ़क़ीर है या अमीर, बीमार है या सेहत मन्द, मुसाफ़िर है या मुक़ीम, उसके बाद ही कोई हुक्म लगाती है जैसे हज सिर्फ़ उन्ही लोगों पर वाजिब है जिनकी माली हालत बेहतर है |

नमाज़ सब पर वाजिब है लेकिन बीमार के लिए और मुसाफ़िर के लिए हुक्म बदल जाता है ऐसे ही रोज़े का भी मामला है कि रोज़े फ़र्ज़ तो हैं, लेकिन अगर कोई बीमार हो या सफ़र की हालत में हो, या औरतों के नापाक दिन चल रहे हों तो उसका हुक्म बदल जाता है |

यानि अगर बन्दे की माली हालत बिगड़ी तो उस पर माली इबादत (ज़कात हो या क़ुरबानी) वाजिब नहीं और अगर जिस्मानी हालत बिगड़ी तो बदनी इबादत (नमाज़ हो या रोज़ा या दुसरे अहकाम) वो माफ़ तो नहीं होते लेकिन छूट मिल जाती है उस वक़्त तक जब तक हालत दुरुस्त न हो जाये |

Qurbani Kis Par Wajib Hai

कितना माल हो तो क़ुरबानी वाजिब है ?

इसी तरह अल्लाह तआला ने क़ुरबानी का हुक्म देने के साथ बन्दे को ये भी बता दिया कि इतना माल हो तो क़ुरबानी वाजिब है वरना नहीं, जिस तरह ज़कात में एक लिमिट तय कर दी कि अगर इतना माल हो तो ज़कात फ़र्ज़ है वरना नहीं

क़ुरबानी वाजिब होने की लिमिट 

वो लिमिट क्या है, वो लिमिट है साढ़े बावन तोला चांदी या इसकी क़ीमत, याद रखें कि घर का हर सामान नहीं जोड़ा जायेगा बस नीचे बताई गयी 4 चीज़ें ही जोड़ी जाएँगी अगर ये चीज़ें साढ़े बावन तोला चांदी के मौजूदा रेट (क़ीमत) को पहुँच जाती हैं तो आप पर क़ुरबानी वाजिब है

वो चार चीज़ें ये हैं

1. सोना चांदी

2. कैश रुपया

3. ज़रुरत से ज़्यादा सामान या कोई चीज़

4. माले तिजारत ( बिज़नेस का सामन )

इन चारों चीज़ों को जोड़ कर देखें, फिर जितने क़र्जें हैं जो अदा करने हैं उसको इस जोड़े हुए माल में से माइनस कर दें जैसे कि आप ने चारों चीज़ों को जोड़ा तो उसकी कीमत थी करीब एक लाख रूपए फिर आपके ऊपर साठ हज़ार का क़र्ज़ था उसको आपने माइनस किया तो बचा चालीस हज़ार

अब हमको देखना है कि क्या चालीस हज़ार से साढ़े बावन तोला या उस से ज़्यादा चांदी ख़रीदी जा सकती है अगर हाँ तो आप पर क़ुरबानी वाजिब है और आप अगर क़ुरबानी नहीं करेंगे तो गुनाहगार होंगे लेकिन अगर इतना कम माल बचा कि उस चांदी के बराबर क़ीमत नहीं पहुँच पाई तो क़ुरबानी वाजिब नहीं |

ज़रुरत से ज़्यादा सामान का क्या मतलब है ?

जैसे आपके पास एक घर है और एक ही गाड़ी और घर की हर चीज़ ऐसी है जिसको आप रोज़ाना इस्तेमाल करते हैं और आपकी ज़रुरत से ज़्यादा इन में कोई चीज़ नहीं तो आप पर क़ुरबानी नहीं

लेकिन अगर आपके दो घर हैं एक में आप रहते है और एक किराये पर उठा दिया है तो जो किराये पर दिया है ये आपके निसाब में जोड़ा जायेगा और क़ुरबानी वाजिब हो जाएगी क्यूंकि ये घर आपकी ज़रुरत से ज़्यादा है इसी तरह आपके पास दो गाड़ियाँ हैं एक इस्तेमाल के लिए और एक ज़्यादा है तो उस को भी उसी में जोड़ा जायेगा

इसी तरह घर का फ़र्नीचर जो ज़रुरत से ज़्यादा हो या घर में कमरे जो ज़रुरत से ज़्यादा हों या इसके अलावा जो भी चीज़ आपकी मिलकियत में हो लेकिन ज़रुरत से ज़्यादा हो तो इसको जोड़ा जायेगा और ज़्यादा निकलने पर ज़कात हो या क़ुरबानी दोनों फ़र्ज़ होंगी

क्या औरत पर भी क़ुरबानी वाजिब है ?

अक्सर औरतें ये समझती हैं कि क़ुरबानी सिर्फ़ मर्दों के जिम्मे है, ऐसा नहीं बल्कि अगर औरत के पास इतना माल है जो निसाब की लिमिट को पहुँच रहा है तो औरत को भी क़ुरबानी करनी होगी |

जैसे उसके पास इतना सोना या चांदी रखा हुआ है जो साढ़े बावन तोला चांदी की क़ीमत से ज़्यादा है तो उस पर जैसे ज़कात वाजिब हुई थी वैसे ही क़ुरबानी भी वाजिब होगी, हाँ अगर उसका शौहर उसकी तरफ से क़ुरबानी करा दे तो भी दुरुस्त है |

क्या घर के कई लोगों पर क़ुरबानी वाजिब होती है ?

हाँ क्यूँ नहीं, यानि घर में कई लोग कमाने वाले हैं और साढ़े बावन तोला चांदी की क़ीमत की मालियत उन सब के पास है तो क़ुरबानी करनी होगी, इस्लाम ने क़ुरबानी वाजिब होने की जो मालियत तय की है वो जिसके पास हो उसपर क़ुरबानी वाजिब है

ज़कात और क़ुरबानी के वाजिब होने में क्या फ़र्क है ?

हाँ, ये बात ज़रूर समझ लें कि जैसे कल से क़ुरबानी के दिन शुरू हो रहे हैं और आज ही मेरे पास इतने पैसे आये कि मैं साहिबे निसाब हो गया (यानि इतना पैसा आ गया कि मैं साढ़े बावन तोला चांदी ख़रीद सकता हूँ) तो क़ुरबानी मुझे करनी पड़ेगी

और ज़कात उस वक़्त वाजिब होती है जब (साढ़े बावन तोला चांदी, या साढ़े सात तोला सोना ख़रीदने के बराबर माल हो और उस पर एक साल गुज़र जाये तब ज़कात वाजिब होगी यानि जैसे ऊपर पैसा आते ही क़ुरबानी के दिनों में क़ुरबानी वाजिब हो गयी लेकिन ज़कात तभी वाजिब होगी जब अपने पास मौजूद माल पर एक साल गुज़र जाये

क़ुरबानी का तरीक़ा और क़ुरबानी की दुआ

अल्लाह तआला हमको समझने और अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए

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