Seeratun Nabi Part 1
आबे ज़मज़म की शुरुआत कैसे हुई
पढने वाले सभी साथियों को अस्सलामुअलैकुम
आप ने सुना होगा कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस सलाम अल्लाह का हुक्म पाकर अपने बेटे इस्माईल अलैहिस सलाम और बीवी हज़रत हाजरा अलैहस सलाम को एक ऐसे वीराने में छोड़ कर चले गए थे जहाँ पानी का एक कतरा भी मौजूद न था
लेकिन जब इस्माईल अलैहिस सलाम( जो कि एक दूध पीते बच्चे थे ) प्यास के मारे ज़मीन में अपनी एड़ियाँ रगड़ रहे थे तब अल्लाह ने एक चश्मा जारी किया जिसका नाम ज़मज़म पड़ा और बाद में ये कुंए की शक्ल इख्तियार कर गया
लेकिन मुहम्मद सल्लाल लाहू अलैहि वसल्लम की पैदाइश से कुछ अरसा पहले इस कुंए का कुछ पता नहीं था तो मक्का वालों को इस की खबर कैसे हुई आइये इस के बारे में जानने के लिए हमें सब से पहले ये मालूम करना होगा कि ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से वो कुवां बंद हो गया था
इस्माईल अलैहिस सलाम के बेटे और कबीला जुरहुम
इस्माईल अलैहिस सलाम के दौर में ( जबकि वो नबी नहीं थे ) एक कबीला जिसका नाम जुरहुम था इस्माईल अलैहिस सलाम से आकर मिला और यहीं आकर बस गया और फिर एक सौ तीस साल की उम्र में जब हज़रत इस्माईल अलैहिस सलाम का इन्तिकाल हो गया तो उनके बेटे खाने काबा के ज़िम्मेदार हुए और एक ज़माने तक होते रहे
लेकिन कुछ अरसे के बाद कबीला जुरहुम और इस्माईल अलैहिस सलाम के बेटों में एक लड़ाई हुई जिसमें कबीला जुरहुम जीत गए और उन ही की हुकूमत कायम हो गयी लेकिन इस कबीले का ज़ुल्मो सितम और खाने काबा की बेहुरमती जब हद से बढ़ गयी तो तमाम अरब के कबीले मुकाबले के लिए खड़े हो गए
कबीला जुरहुम का ज़मज़म के कुएं का बंद करना
तो मजबूरन कबीला जुरहुम को मक्का छोड़ कर भागना पड़ा लेकिन जब वो निकलने लगे तो खाने काबा की चीज़ों को ज़मज़म के कुएं में दफ़न कर गए और कुएं को इस तरह बंद करके ज़मीन के बराबर कर गए कि ज़मज़म का निशान भी बाकी नहीं रहा
फिर इन लोगों के जाने के बाद वापस इस्माईल अलैहिस सलाम की औलादें आकर बसीं लेकिन किसी ने इस कुएं की तरफ तवज्जोह न दी वक़्त गुजरने के साथ इस का निशान भी बाकी न रहा
कुवां दोबारा कब खोदा गया
यहाँ तक कि जब मक्का की हुकूमत हमारे नबी मुहम्मद सल्लाल लाहू अलैहि वसल्लम के दादा अब्दुल मुत्तलिब के हाथ में आई तो खुदा ने चाहा कि अब वक़्त है कि उस कुएं को जो कि एक अरसे से बंद पड़ा है उसको सबके सामने लाया जाये और उसका फैज़ सब पर आम कर दिया जाये इसलिए अब्दुल मुत्तलिब को ख्वाब में उस जगह के खोदने का हुक्म दिया जहाँ कुवां था
चुनांचे अब्दुल मुत्तलिब कहते हैं कि मैं हतीम में सो रहा था कि ख्वाब में एक शख्स मेरे पास आया और मुझ से कहा कि कुंवा खोदो और ये ख्वाब मैं लगातार तीन दिन तक देखता रहा चौथे रोज़ उसने कहा ज़मज़म का कुवां खोदो
“मैंने कहा: ज़मज़म क्या है
“उसने कहा” वो पानी का एक कुवां है जिसका पानी न कभी टूटता है और न ही कभी कम होता है और बेशुमार हाजियों को सैराब करता है फिर उस जगह के कुछ निशान और अलामात बताई गयीं कि इस जगह को खोदो
तो अब्दुल मुत्तलिब को यकीन हो गया कि ये सच्चा ख्वाब है इसलिए इस ख्वाब को अपने कबीले कुरैश के सामने बयान किया और कहा मेरा इरादा इस जगह को खोदने का है तो कबीला कुरैश ने मुखालिफत की लेकिन अब्दुल मुत्तलिब अपने बेटे हारिस को लेकर उस जगह पहुँच गए और खोदना शुरू कर दिया
तीन रोज़ तक खोदने के बाद कुवां नज़र आ गया तो अब्दुल मुत्तलिब ने ख़ुशी से अल्लाहु अकबर का नारा लगाया और कहा कि ये इस्माईल अलैहिस सलाम का कुवां है
इस के बाद उन्होंने कुवें के करीब कुछ हौज़ तैयार करवाए जिन से हाजी आबे ज़मज़म भर भर कर पीते
शरपसंदों की आबे ज़मज़म से छेड़छाड़
लेकिन कुछ लोग जो मक्का में अब्दुल मुत्तलिब से जलते थे उन्होंने ये शरारत शुरू कर दी कि रात में उन हौजों को खराब कर जाते जब सुबह होती तो अब्दुल मुत्तलिब उन को दुरुस्त करते आखिर उनको ख्वाब में बतलाया गया कि इस से पीने की इजाज़त है नहाने की नहीं अब्दुल मुत्तलिब ने सुबह इस का ऐलान कर दिया
इस के बाद जब कसी ने हौज़ के खराब करने का इरादा किया वो ज़रूर किसी न किसी बीमारी में मुब्तिला हुआ घबरा कर शर पसंदों ने कुँवें से छेड़छाड़ करना बंद कर दिया