Reality Of Indian Premier League |
IPL का नशा या नौजवान का नाश?”
IPL (Indian Premier League) आज सिर्फ़ एक खेल नहीं रहा वो सिर्फ़ एक क्रिकेट टूर्नामेंट नहीं रहा बल्कि एक क्रेज़ बन चुका है, नौजवान हों बच्चे हों या बूढ़े, सब इसे एक त्योहार की तरह मनाते और पसन्द करते हैं और लोग अलग अलग तरह से इससे अपना business चला रहे हैं और पैसे कमा रहे हैं | लेकिन अगर गौर करें तो इस अन्धी दुनिया में सब से ज़्यादा नुक़सान किसका हो रहा है? आज हम इसी को सामने रखते हुए ipl की हक़ीक़त ( Reality Of Indian Premier League ) को सामने लायेंगे |
ज़ाहिर है बच्चों का, वो बच्चे जो अपनी education पर ध्यान देते और अपने फ्यूचर सिक्योर करने की बातें करते वो आज किसी टीम के हार और जीत पर बहस कर रहे हैं, जो वक़्त उन्हें आने वाले दस सालों में तरक्क़ी और पहचान दे सकता था और बेहतरीन मक़ाम दिला सकता था, वो वक़्त आज किसी बालर या बैटर के रन रेट के comparison में लगा हुआ है |
इस technology के दौर में किताबों की दुनिया कहीं गुम होती जा रही है और स्क्रीन की रंगीनियाँ आगे आ रही हैं, नतीजा क्या हुआ, न तालीम रही न तरबियत, बस दिखाने वाली और ताली बजाने वाली ज़िन्दगी रह गयी, और तमाशबीनों में दिन ब दिन इज़ाफ़ा होता ही चला जा रहा है |
तो ये है आज की दुनिया का नौजवान जिसे सारी दुनिया की उम्मतों का सरदार बना कर भेजा गया था, ज़माने का गमख्वार बनाया गया था, लेकिन फ़िज़ूल चीज़ों में पड़ने की वजह से लोगों की आहें फ़रियादें उसके कानों तक ही नहीं पहुँचती, और अगर पहुँचती भी हैं तो उस का दिल ही नहीं पिघलाती, उसकी आँखों से आंसू का एक क़तरा भी नहीं गिरता और न तो उसको अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होता है |
तो IPL का ये सस्ता नशा आज की नौजवान नस्ल को क्या क्या नुक़सान पहुंचा रहा है चलिए, इस मसअले को तफ़सील से समझते हैं
1. IPL का नशा औए वक़्त की बर्बादी
जैसे ही IPL शुरू होता है तो बगैर नागा एक हर रोज़ एक नया मैच होता है जिसको देखने के लिए उसके चाहने वाले दीवाना वार टूट पड़ते हैं और घंटों स्कोर बोर्ड से लगे बैठे रहते हैं ये सोचे बगैर कि इससे पढाई और अपनी ज़िन्दगी का मक़सद कितनी बुरी तरह डिस्टर्ब हो रहा है और बात यहीं पर ख़त्म नहीं होती बल्कि fantasy क्रिकेट और सोशल मीडिया पर matches का डिस्कशन भी होता रहता है जिससे क़ीमती वक़्त बर्बाद होता रहता है
जब हम वक़्त और time के बारे में कुरआन और हदीस में देखें तो इस्लाम में इसकी बड़ी अहमियत बताई है चुनांचे अल्लाह तआला कुरआन में फरमाते हैं
وَالْعَصْرِ ١
إِنَّ الْإِنسَانَ لَفِي خُسْرٍ ٢
(Surah Al-Asr: 1-2)
हिन्दी तरजुमा : ज़माने की क़सम ! बेशक इन्सान बड़े नुक़सान में हैं
और नबी करीम सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
दो नेअमतें ऐसी हैं जिनके बारे में अक्सर लोग धोका खा जाते हैं (1) सेहत (2) फ़रागत (वक़्त)
(Sahih Bukhari 6412)
यानि वक़्त और फुरसत बहुत बड़ी नेअमतें है जिसे फ़ुज़ूल चीज़ों में जाया करना अच्छी बात नहीं है अगर बच्चे डेली 3 से 4 घन्टे IPL में ही लगा देंगे तो इस कम्पटीशन के दौर में उनकी तालीम का क्या होगा और उनके फ्यूचर का क्या बनेगा ?

2. Screen Addiction: Mobile Aur TV Ka Nasha
देखा जाये तो IPL देखना मतलब स्क्रीन का आदी हो जाना वो स्क्रीन टीवी की हो या मोबाइल की, सोशल मीडिया की fantacy लाइफ ने लोगों को सस्ता नशा देकर स्क्रीन का ग़ुलाम बना दिया है जिसका नतीजा ये होता है कि
• Attention Span कम हो रहा है यानि जो स्क्रीन एडिक्ट है वो किसी एक चीज़ पर लम्बे टाइम तक फोकस नहीं पाता है
• Mental Health aur Sleep Disturbance देर रात तक स्क्रीन से चिपके रहने पर नींद पर बहुत बुरा असर पड़ता है और अगर नींद पर बुरा असर पड़ता है तो दिमाग़ पर बुरा असर जाता है
• Physical Activity का नुक़सान बच्चे बाहर खेलते हैं तो इससे उनकी Physical Activity से जिस्मानी और ज़हनी सेहत बनी रहती है लेकिन games, mobile और TV screens की नहूसत उन्हें Physically और Mentally खोखला कर रही है
عن أبي هريرة رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم:”من حسن إسلام المرء تركه ما لا يعنيه”
(رواه الترمذي، رقم: 2317)
हिन्दी तरजुमा : आदमी के इस्लाम की ख़ूबी ये है कि इन्सान बे फ़ायदा और फ़ुज़ूल चीज़ों को छोड़ दे
यानि जिन चीज़ों का न दुनिया में कोई फ़ायदा और न ही आख़िरत में कोई फ़ायदा तो ऐसी चीज़ें बेफायदा और फ़ुज़ूल हैं इनको छोड़ देना और बा मक़सद ज़िन्दगी गुज़ारना एक बेहतरीन मुसलमान होने की निशानी है
Scientific Research:
American Academy of Pediatrics की मानें तो उन बच्चों में learning disabilities aur anxiety का risk 40% बढ़ जाता है जो बच्चे डेली 2 घन्टे से ज़्यादा स्क्रीन से लगे रहते हैं
Harvard University में एक रिसर्च हुई जिसमें ये बात सामने आई कि उन लोगों में mental sharpness और focus कम होने लगता है जिनका स्क्रीन टाइम रोज़ाना 3 से 4 घन्टे है और अगर बचपन में ही आदत पड़ गयी तो तो उनकी Decision-Making और Logical Thinking Skills कमज़ोर हो जाती हैं, मतलब ये है कि जो रोज़ाना 3-4 घन्टे से ज़्यादा स्क्रीन का आदी है तो वो ज़हनी तौर पर अपाहिज बनने की जानिब क़दम बढ़ा रहा है |
3. Fake Role Models: Asli Role Models Kaun?
जहाँ तक बच्चों की बातें करें तो हर बच्चा किसी न किसी खिलाड़ी का फैन होता है और वो उस खिलाड़ी को इस हद तक like करने लगता है कि उसके hairstyle, dressing और lifestyle को follow करता है, लेकिन यहाँ पर मेरा एक सवाल है कि क्या ये क्रिकेटर follow करने या पैरवी करने लायक़ हैं अच्छा चलिए, अगर किसी ने follow किया तो क्या क्या सीखता है और क्या क्या मसअले पैदा हो जाते हैं
1.Aggressive Behavior – IPL के दौरान प्लेयर्स का ग़ुस्सा, भीड़ का रिएक्शन और स्लेजिंग बच्चों को अक्रामक रवैया सिखाते है।
2.Materialistic Soch – क्रिकेटर्स की शोहरत और दौलत देखकर बच्चे समझते हैं कि सिर्फ़ नाम और पैसा कमाना ही ज़िंदगी का मक़सद है।
3.इस्लामी उसूलों से दूरी – ज़्यादातर क्रिकेटर्स का लाइफ़स्टाइल इस्लामी अख़्लाक़ से मेल नहीं खाता।
जो लोग मशहूर होते हैं वो सिर्फ़ अपनी ज़िन्दगी नहीं जीते हैं बल्कि दूसरों पर भी असर डालते हैं इसी तरह ये खिलाड़ी अपनी शोहरत व दौलत की वजह से लोगों के पसंदीदा व favorite बन जाते हैं और बच्चे इनके जैसा बन्ने की कोशिश करते हैं लेकिन सोचने की बात तो ये है कि अगर एक बच्चा इनको अपना idol बनाएगा तो उसे इस्लामी अखलाक़ कहा अच्छे लगेंगे वो इस्लामी ज़िन्दगी जीना कैसे सीखेंगे |
Asli Role Models Kaun?
चलिए ठीक है, अगर ये नहीं तो असली रोल मोडल कौन हैं जिनको अगर follow किया जाये तो वाक़ई ज़िन्दगी अल्लाह और उसके रसूल की पसंदीदा होगी दुनिया व आख़िरत में कामयाब होगी तो वो हैं
• नबी पाक सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम
• सहाबा किराम
• अल्लाह के तमाम नेक बन्दे
ये हैं जिनको real heroes कहा जा सकता है जिनको follow करके अपनी ज़िन्दगी बेमिसाल बनाई जा सकती है आने वाली पीढ़ी के लिए हम नमूना बन सकते हैं इस उम्मत के लिए फ़ायदेमंद शख्स की हैसियत से ज़िन्दगी गुज़ार सकते हैं इसलिए पहले हमें इन heroes को जानना होगा, पढ़ना होगा ताकि हम लोग भी इनकी तरह खुद को पटरी पर ला सकें |