Sadqa Kaise Kare | खुशहाल ज़िन्दगी के लिए बेहतरीन अमल | Hindi

Sadqa ( सदक़ा ) Kaise Kare

खुशहाल ज़िन्दगी के लिए बेहतरीन अमल

सदके की दो किस्में

आम सदक़ा उसमे सदक़ा करने वाले को उसका सवाब हमेशा बाक़ी नहीं रहता जैसे किसी ज़रूरतमन्द की ज़रूरत पूरी करना  भूखे को  खिलाना और बीमार के इलाज के लिए पैसे  देना ये सदक़ा भी इबादत है और इसका बड़ा सवाब है जहां तक हो सके इसमें हिस्सा लेते रहना चाहिए

सदक़ा जारिया इसका मतलब है अल्लाह की ख़ुशी के लिए देर तक रहने वाली खैर और देर तक फायदा पहुंचने वाली चीज़ दूसरो के लिए मुक़र्रर कर दी जाये उसको सदक़ए जरिया कहते है ऐसा सदक़ा करने वाला दुनिया से चला गया लेकिन काम ऐसा कर गया की मरने के बाद भी वो जारी है तो उसको इसका सवाब मिलता रहेगा

Sadaqah ( صدقة) is charity given voluntarily in order to please God. Sadaqah also describes a voluntary charitable act towards others, whether through generosity, love, compassion or faith. These acts are not necessarily physical or monetary. Simple good deeds such as a smile, or a helping hand, are seen as acts of sadaqah.

Sadaqah Jaria – it means that for the pleasure of Allah, the thing that lasts for a long time and the thing which is beneficial for a long time should be appointed for others, it is called Sadaqah Jariya, such a person who performs Sadaqah has left the world but has done such work that after death. Even if it continues, then it will continue to get its reward.

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हदीस शरीफ़

हदीस शरीफ में है कि सात आदमी ऐसे है जिन्हे उनके सदके  का सवाब मौत के बाद भी दिया जायेगा

  1. जो शख्स इल्म सिखाये
  2. नहर बनादे
  3. कुंवा खोद दे
  4. पेड़ लगा दे
  5. मस्जिद बना दे
  6. क़ुरआन पाक को तरके में छोड़ जाए
  7. एक नेक लड़का छोड़ जाये जो उसके लिए दुआ इस्तेग़फ़ार करता रहे

ये सात आदमी है जो अपनी क़ब्रो में होंगे तब भी इनको इस सदक़ए जरिया का सवाब पहुँचता रहेगा

सदके की आसान तरकीब

सदक़े की असान तरकीब ये है कि हर शख्स अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा अल्लाह की राह में खर्च करने के लिए खास कर ले एक चाहे एक परसेंट हो यानी सौ रुपए में एक रुपया हजार रूपए में दस रुपए बक़ाएदगी से अदा करते रहे इतना तो हर शख्स अदा कर सकता है और ये कम से कम मिक़्दार है सदके की दूसरी सूरते भी है इन में से कुछ के बारे में हदीस शरीफ में बताता गया है |

 

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अगर सदका ना कर सके तो…
हूजूर स.अ. ने फ़रमाया कि हर मुसलमान पर सदक़ा ज़रूरी है सहाबा ने फ़रमाया
  1. अगर वो इतना ना पा सके तो हुज़ूर स. अ में फ़रमाया वो अपने हाथ से मज़दूरी करे और खुद को भी नफा पहूचाए और सदक़ा भी करे
  2. सहाबा ने अर्ज़ किया अगर वो न कर सके तो आप स.अ ने फ़रमाया वो किसी परेशां हाल की मदद कर दे
  3. सहाबा ने अर्ज़ किया अगर वो ये भी ना कर सके तो आप स. अ. ने फ़रमाया अच्छी बात और नेकी का हुक्म दे
  4. सहाबा ने अर्ज़ किया अगर वो ये भी ना कर सके तो आप स.अ. ने फ़रमाया वो किसी को तकलीफ देने से बचा रहे यही उसके लिए सदक़ा है.                                                                                                                                                                                                                                          ( अल्लाह हम सबको सदके की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए )

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