Shabe Baraat Me 6 Kaam Karne Chahiye |
शबे बरात में ये 6 काम करना चाहिए
अल्लाह तआला ने इन्सान के लिए जो नेअमतें पैदा की हैं, उन में से एक नेअमत रात है, और ये वो वक़्त है जिस में सारी दुनिया दिन भर की थकान के बाद अपने दिल, दिमाग़ और जिस्म को नीन्द के ज़रिये सुकून दे रही होती है, और अगले दिन के लिए फ़िर से चार्ज और रिफ्रेश हो रही होती है
लेकिन इन रातों में कुछ रातें ऐसी भी हैं जिनकी अहमियत और फ़ज़ीलत दूसरी रातों के मुकाबले बहुत ज़्यादा है, और उन रातों में शबे बरात (Shabe Baraat) और लैलतुल क़द्र ( Lailatul Qadr ) भी है, इन रातों में इबादत करने वाला अल्लाह का क़ुर्ब हासिल करता है और अपने आमाल नामे में नेकियाँ जमा करवाता है, और जन्नत का तलबगार होता है
तो ऐसी बरकत वाली रात में जब हम हम नेकी करते हैं तो सवाब कई गुना मिलता है, और अगर गुनाह करते हैं तो उसकी नहूसत भी कई गुना बढ़ जाती है, इसलिए आज हम शबे बरात के बारे में कुछ बातें बयान करेंगे जिससे आपको पता चलेगा कि इस रात में हमें क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए |
Shabe Qadr Aur Shabe Barat Me Farq |
शबे क़द्र और शबे बरात में फ़र्क
शबे बरात : गुनाहों से बरी होने की रात, इस रात में इबादत करने वाले के गुनाह माफ कर दिए जाते हैं और बंदा गुनाहों से बरी हो जाता है
शबे क़द्र : ये रात आमतौर से रमजान में होती है, इस रात में इबादत करने वाले की क़द्र अल्लाह के यहं बहुत ज़्यादा है और बन्दे का अल्लाह के यहाँ प्रोमोशन हो जाता है और वो अल्लाह के और ज़्यादा क़रीब हो जाता है
शबे बरात में ये 6 काम करना चाहिए
1. इशा और फ़ज्र की नमाज़ जमात के साथ पढ़ना
सब से पहला काम ये है कि रात में जागें या न जागें, लेकिन कम से कम इशा और फ़ज्र की नमाज़ जमात के साथ ज़रूर पढ़ें, इससे हमें रात की फ़ज़ीलत कुछ हिस्सा इंशाअल्लाह ज़रूर मिल जायेगा लेकिन अगर रात भर जागे और ख़ूब नफ्ल नमाज़ें पढ़ीं लेकिन जब फ़र्ज़ अदा करने का वक़्त आया तो सो गए तो ये बहुत ही महरूमी की बात है
2. गुनाहों से बचना
एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि भले इबादत और नेकियाँ कम करें लेकिन गुनाह न करें, जैसे अगर कोई बंदा नेकियाँ तो करता है लेकिन गुनाह से बिलकुल नहीं बचता तो उसकी मिसाल बिलकुल ऐसी है कि एक सुराख़ वाले गिलास में पानी लेना कि उस में पानी तो ले लिया लेकिन सुराख़ की वजह से सारा पानी गिर गया, और गिलास ख़ाली का ख़ाली ही रहा
इसलिए गुनाह कम से कम करें ताकि जो भी नेकियाँ आपकी झोली में आयें वो बाक़ी रहें ऐसा न हो कि गुनाहों की नहूसत की वजह से नेकियों का असर ख़त्म हो जाये, इसलिए याद रखें कि इबादत ज़रूरी नहीं है, जागना ज़रूरी नहीं है लेकिन गुनाहों से बचना बहुत ज़्यादा ज़रूरी है
3. तौबा व इस्तेग्फार करना
इस रात में अपने तमाम गुनाहो की माफ़ी मांगें और रो रो कर अल्लाह से तौबा करें, क्या मालूम कि ये किसकी आख़िरी शबे बरात हो, तो इस से पहले कि अल्लाह से मुलाक़ात हो अपने गुनाहों से तौबा कर लें
4. तमाम मुसलमानों और अपने लिए दुआ करना
जब दुआ करने लगें तो अपने आप को न देखें बल्कि अल्लाह की शान को देखें, और अल्लाह की शान ये है कि इतना दे देता है कि पूरी दुनिया में बाँट दिया जाये फ़िर भी बच जाये, इसलिए सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं बल्कि दूसरे तमाम मुसलमानों के लिए भी मांगे जो इस दुनिया से जा चुके उनके लिए भी और जो मौजूद हैं उन के लिए भी |
5. अपने नबी पर दुरूद भेजना
जब भी ज़िक्र किया जाये और उस में हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) पर दुरूद न पढ़ा जाये तो ये बहुत बड़ी ना इन्साफी की बात है, हमारे नबी का हक़ है कि उन पर दुरूद शरीफ़ का नज़राना पेश किया जाये और अपने दिल में अपने नबी की मुहब्बत को ताज़ा रखा जाये |
6. 15 वीं शाबान का रोज़ा रखना
दुआ, दुरूद और इस्तेग्फार के बाद एक बहुत ही अहम् इबादत जो 15 शाबान के लिए बहुत ही ख़ास है, वो है रोज़ा रखना, यहाँ पर ये याद रखना चाहिए कि रोज़ेदार के मुंह की बू अल्लाह के यहाँ मुश्क की ख़ुशबू से भी ज़्यादा पसंद है, इसलिए अपने आमालनामे में एक रोज़ा लिखवा लेना बहुत बड़ी अक्लमंदी की बात है
कितनी देर जागना चाहिए ?
लोगों के जहन में बात ये चलती रहती है कि पूरी रात जागना है चाहे इबादत हो या खुराफ़ात, लेकिन ये बिलकुल मुनासिब नहीं है बल्कि जितनी देर आप चुस्ती के साथ इबादत कर सकते हैं करें, उसके बाद आप सो जाएँ, फ़ज्र के वक़्त उठ कर तहज्जुद पढ़ लें, तो इंशाअल्लाह पूरी रात इबादत में लिखी जाएगी
लेकिन अगर आप पूरी रात जागते रहे, और इबादत तो कम हुई लेकिन चाय नाश्ते और दुनियावी बातें ज़्यादा हुईं तो याद रखिये मस्जिद अल्लाह का घर है और उसके अन्दर इन्तिहाई अदब और एहतेराम के साथ रहना ज़रूरी है अगर मस्जिद में भी हम सीरियस न हो सके तो कहाँ जाकर होंगे इसलिए पूरी दिलचस्पी के साथ इबादत में मशगूल हो जाइये |
क्या इस रात के लिए कोई ख़ास नमाज़ है ?
इस रात में कोई ख़ास नमाज़ नहीं है बेहतर है कि अपनी छूटी हुई नमाज़ों की क़ज़ा कर लें जिससे उन नमाज़ों के छूटने का बोझ जो सर पर है वो उतर जाये लेकिन अगर नफ्ल नमाज़ पढ़ना चाहते हैं तो सलातुत तस्बीह नमाज़ पढ़ लें और इसके अलावा दो दो रकात करके जितने भी नफ्ल पढ़ना चाहें पढ़ सकते हैं, क़ुरान की तिलावत, तस्बीह, दीन की वो बात जो पहले से पता नहीं थी उसको सीख सकते हैं
सलातुत तस्बीह नमाज़ जमात के साथ पढ़ें या अलग अलग ?
नफ्ली नमाज़ें जमात के साथ नहीं बल्कि ये अलग अलग ही पढ़ी जाती हैं, और ये जहाँ तक हो सके लोगों से छिप कर ही की जाती हैं इसलिए अगर आप अपने घर में रह कर ही इस रात इबादत कर सकें तो इस से बढ़कर और कोई बात नहीं, क्यूंकि बन्दा अपनी इबादत को सिर्फ़ अल्लाह को दिखाए दुसरे बन्दों को नहीं
अल्लाह हमें अपना सच्चा बंदा बनाये
और ईमान की हालत में अपने पास बुलाये