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What is Farz, Wajib, Sunnat | क्या है ये फ़र्ज़, वाजिब, सुन्नत, मकरूह, हराम

क्या है ये फ़र्ज़, वाजिब, सुन्नत, मकरूह और हराम

What is Farz, Waajib, Sunnat, Makrooh, Haraam In Islam

आप ने आम तौर से सुना होगा कि ये अमल फ़र्ज़ है और ये वाजिब ये मुस्तहब ये सुन्नत और ये मकरूह है लेकिन क्या आप ने जानने की कोशिश की कि अगर नमाज़ में कोई अमल

फ़र्ज़ या वाजिब है तो उसके छूट जाने से नमाज़ पर क्या असर पड़ेगा |

मुस्तहब, मकरूह या हराम है तो उसके करने से नमाज़ का क्या होगा |

और ये तो मैंने एक नमाज़ की मिसाल दी है हालांकि हमारी पूरी ज़िन्दगी में जो भी अमाल होते हैं चाहे रोज़ा हो ज़कात, हज, या ज़िन्दगी के दुसरे काम हों उनमें कुछ को शरीअत ने फ़र्ज़, वाजिब किया है किसी को मुस्तहब और सुन्नत तो किसी को मकरूह या हराम किया है चलिए इसके बारे में तफसील से जानते हैं कि इन इस्तिलाहों का ( Sharai Terms ) का क्या मतलब होता है |

फ़र्ज़ : ( Farz ) इसकी 2 किस्में हैं

फ़र्ज़ ऐन : ( Farze Ayn) इसका मतलब होता है जिसका करना हर एक पर ज़रूरी हो और कुछ लोगों के करने से ज़िम्मेदारी हटती न हो जैसे नमाज़, रोज़ा वगैरह

नमाज़ और रोज़ा फ़र्ज़ ऐन है हर शख्स को करना ज़रूरी है कुछ लोगों के करने से सब की ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं होती |

फ़र्ज़ किफ़ाया : ( Farze Kifaya ) इसका मतलब है कि अगर कुछ लोगों ने कर लिया तो सब से जिम्मेदारी हट जाएगी लेकिन अगर किसी ने नहीं किया तो बस्ती सारे के सारे लोग इसके जिम्मेदार और गुनाहगार होंगे जैसे नमाज़े जनाज़ा |

नमाज़े जनाज़ा फ़र्ज़ किफ़ाया है उसको अगर कुछ लोग पढ़ लेते हैं तो पूरी बस्ती के ऊपर से ये ज़िम्मेदारी हट जाती है लेकिन अगर किसी ने नहीं किया तो पूरी बस्ती वाले ज़िम्मेदार होते हैं |

वाजिब ( Waajib )

इसको इस तरह समझिये कि अगर नमाज़ में कोई अमल वाजिब है तो उसके छूट जाने से सज्दए सहव वाजिब होता है जैसे

वित्र में दुआए क़ुनूत पढना वाजिब है लेकिन आप पढना भूल गए तो आप को सज्दाए सहव कर लें तो इसकी भरपाई हो जाएगी लेकिन अगर कोई अमल फ़र्ज़ है तो उसके छूटने से आप को नमाज़ दोहरानी पड़ेगी |

सुन्नत : ( Sunnat )

इसकी दो किस्में हैं

सुन्नते मुअक्किदा : ( Sunnate Muakkida )जिसकी ताकीद की गयी हो जिसको जान बूझ कर छोड़ने वाला गुनाहगार होगा और करने वाला सवाब हासिल करेगा |

सुन्नते गैर मुअक्किदा : ( Sunnate Ghair Muakkida ) जिसकी ज्यादा ताकीद न हो इसका हुक्म ये है कि करने वाला सवाब हासिल करेगा लेकिन न करने वाला गुनाहगार नहीं होगा |

लेकिन सही ये है कि जिनकी ताकीद न हो फिर भी बंदा अल्लाह की रजा के लिए इन अमल को न छोड़े तो अल्लाह उसके दर्जे बुलंद फरमा देते हैं और वहां उसका मुक़ाम अता फरमा देते हैं जहाँ इन को छोड़ने वाले नहीं पहुँच पाए | जैसे आपके ऑफिस में एक बंदा सिर्फ अपनी डयूटी पूरी करता है और दूसरा डयूटी पूरी करने के साथ साथ थोडा सा वक़्त ऑफिस को और दे देता है तो ज़ाहिर है कि बोस इसी को पसंद करेगा और प्रोमोशन भी इसे ही देगा |

मुस्तहब : ( Mustahab )

उस अमल को कहते हैं कि जिसका करने वाला सवाब हासिल करेगा लेकिन न करने वाला गुनाहगार नहीं होगा, और इसको मन्दूब भी कहते हैं |

हराम : ( Haraam )

वो अमल है कि जिसके करने पर सख्त अज़ाब होगा और छोड़ देने पर सवाब | इसलिए जो चीज़ें इस्लाम में हराम हैं उनको छोड़ना बहुत ज़रूरी है |

मकरूह : ( Makrooh )

नापसंदीदा को कहते हैं इसकी दो किस्में हैं

मकरूह तहरीमी : ( Makrooh Tahreemi ) उस अमल को कहते हैं जो शरीअत में नापसंदीदा हो और हराम के करीब हो और उसके करने पर अज़ाब हो |

मकरूह तन्ज़ीही : ( Makrooh Tanzeehi ) जो हलाल के करीब हो उसके करने पर अज़ाब नहीं होगा लेकिन छोड़ने वाला सवाब हासिल करेगा |

 

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